कहा- MBBS कोर्स की सालाना फीस ₹ 53,000 से सीधे ₹ 10 लाख करना अन्याय, देश में सबसे महंगी शिक्षा में भी हरियाणा नम्बर-1
CHANDIGARH: राज्य सभा सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 20 गुना फीस बढ़ाए जाने का कड़ा विरोध करते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। उन्होंने कहा कि एक ओर हुड्डा सरकार के कार्यकाल में प्रदेश में 6 नए सरकारी मेडिकल कॉलेज खुले व कुल सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या 7 पहुंची, दूसरी ओर 6 वर्षीय खट्टर सरकार में नया खोलना तो दूर अब सरकारी मेडिकल कॉलेजों की सालाना फ़ीस बेतहाशा बढ़ाकर ₹53,000 से सीधे ₹10 लाख कर दी गई। उन्होंने कहा कि हुड्डा सरकार के समय सस्ती और सुलभ उच्च शिक्षा वाला हरियाणा अब देश में सबसे महंगी शिक्षा में नम्बर-1 हो गया है।
किसानों को कर्ज के दलदल में फंसाने वाली बीजेपी-जेेजेपी सरकार अब गरीब और मध्यम वर्ग के मेधावी छात्रों को कर्ज के दलदल में धकेलना चाहती है
दीपेन्द्र हुड्डा ने हर साल 10 लाख रुपए के बॉन्ड लिए जाने पर भी आपत्ति जताते हुए कहा कि किसानों को कर्ज के दलदल में फंसाने वाली बीजेपी-जेेजेपी सरकार अब गरीब और मध्यम वर्ग के मेधावी छात्रों को कर्ज के दलदल में धकेलना चाहती है। दीपेन्द्र हुड्डा ने मांग की कि BJP-JJP सरकार मेडिकल विद्यार्थियों को कर्ज के दलदल में धकेलने वाला फैसला वापस ले।
दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि आज देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर हरियाणा में है, ऐसे में नयी नौकरी मिलना तो दूर जिनके पास पहले से नौकरी थी वो भी जा रही है। डॉक्टरी की पढाई पूरी करने वालों को सरकार नौकरी की गारंटी दिए बिना उनपर कर्ज का बोझ लाद रही है। जिन्हें नौकरी नहीं मिलेगी, उन्हें बांड के तौर पर लिए कर्ज का पैसा खुद किस्तो में चुकाना होगा।
सरकारी मेडिकल कॉलेजों पर ताला लगाने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा
सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने बताया कि सरकार के इस युवा विरोधी फैसले के चलते प्रदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए सालाना 10 लाख रु. का बॉन्ड देना होगा। साढ़े 4 साल के कोर्स के लिए कुल 40 लाख बॉन्ड देना होगा। पहले साल के लिए फीस 80,000 रुपये तय की गई है, जिसमें हर साल 10 फीसदी का बढ़ोतरी होती रहेगी। दूसरे साल यह 88,000 रुपये, तीसरे साल 96,800 रुपये और चौथे साल 1,06,480 रुपये हो जाएगी। उन्होंने कहा कि मौजूदा हरियाणा सरकार के इस फैसले से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी या तो कोई दूसरा रास्ता अपनाने को मजबूर होंगे या फिर निजी मेडिकल कॉलेजों में जाना उनकी मजबूरी होगी। ऐसे में सरकारी मेडिकल कॉलेजों पर ताला लगाने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा।