इमरजेंसी का काला अध्याय भारतीय लोकतंत्र के माथे पर एक कलंक की तरह: रामबिलास शर्मा
CHANDIGARH, 25 JUNE: देश में 25 जून 1975 को लगाई गई इमरजेंसी के दिन 25 जून को भारतीय जनता पार्टी द्वारा देश में लोकतंत्र के इतिहास के काले दिवस के रूप में मनाया गया। इमरजेंसी के दौरान घटित हुई घटनाओं व आमजन को हुई परेशानीयो तथा तत्कालीन सरकार द्वारा विरोधियों के साथ की गई ज्यादतियों बारे नई पीढ़ी को जानकारी देने तथा इमरजेंसी के दौरान यातनाएं सहन करने वाले लोकतंत्र के सिपाहियों को याद करने के उद्देश्य से कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें हरियाणा सरकार के पूर्व मंत्री रामविलास शर्मा जो स्वयं आपातकालीन पीड़ित लोकतंत्र के योद्धा है तथा इमरजेंसी के दौरान 19 महीने जेल में रहे, ने मुख्य अतिथि के रूप में हिस्सा लिया। कार्यक्रम में उनके साथ प्रदेश अध्यक्ष अरुण सूद, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष संजय टण्डन, प्रदेश महामंत्री चंद्रशेखर , रामवीर, मेयर सरबजीत कौर ढिल्लों, आपातकाल के भक्तभोगी देशराज टण्डन व जितेंद्र चोपड़ा सहित सभी प्रदेश पदाधिकारी, पार्षद, जिला मोर्चा अध्यक्ष महामंत्री, मंडल अध्यक्ष व बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
प्रदेश भाजपा प्रवक्ता कैलाश चंद जैन ने बताया कि दीप प्रज्वलन से शुरू हुए इस कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष अरुण सूद ने मुख्य अतिथि व अन्य कार्यकर्ताओं का स्वागत किया तथा चंडीगढ़ में भी इमरजेंसी के प्रभावों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि जहां सारे देश में विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया वहीं चंडीगढ़ से भी सत्यपाल जैन, देसराज टंडन, जितेंद्र वीर गुप्त, बाबू दलीपचन्द गुप्त, रविंद्र सहगल, जितेंद्र चोपड़ा, प्रेम सागर जैन, प्रेम नारद, ओम अहुजा, रमेश्वर जी, राम लाल गुप्ता, सुरेंद्र महाजन, सहित अनेक विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाला गया जिनमें से कुछ आज भी हमारे बीच है तथा कुछ के परिजन है जिन्हें आज हम सब नमन करते हैं व भारत के लोकतंत्र को बचाने में उनके सहयोग का सम्मान करते हैं।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि रामविलास शर्मा ने कहा कि इमरजेंसी का काला दौर बहुत ही भयानक था विपक्षी नेताओं को एकदम बिना किसी वजह के गिरफ्तार कर जेलों में ठूंस दिया गया था ऐसा लगता था जैसे जेल में से कभी आजाद नहीं होंगे । 19 महीने की लंबी कालकोठरी, पीछे घर वालों को कई महीनों तक तो यह भी नहीं पता चला कि उनके परिजन किस जगह और किस हाल में है , ऐसे काले दौर के साक्षी हैं वे स्वयं।
रामबिलास शर्मा ने आपातकाल के बारे में बताते हुए बताया आज से 47 साल पहले देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया था, जिसे भारतीय राजनीति के इतिहास का काला अध्याय भी कहा जाता है. 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक लगी रही. उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी. स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादस्पद काल था. आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे. इसे आजाद भारत का सबसे विवादास्पद दौर भी माना जाता है. वहीं अगले सुबह यानी 26 जून को समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा गांधी की आवाज में आपातकाल की घोषणा के बारे में सुना. आपातकाल के पीछे कई वजहें बताई जाती है, जिनमें सबसे अहम 12 जून 1975 को इलाहबाद हाईकोर्ट की ओर से इंदिरा गांधी के खिलाफ दिया गया फैसला। कहा जाता है कि आपातकाल की नींव 12 जून 1975 को ही रख दी गई थी. इस दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली के चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का दोषी पाया था और उनके चुनाव को खारिज कर दिया था. इतना ही नहीं, इंदिरा पर छह साल तक चुनाव लड़ने पर और किसी भी तरह के पद संभालने पर रोक भी लगा दी गई थी.
राज नारायण ने 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद मामला दाखिल कराया था. जस्टिस जगमोहन सिन्हा ने यह फैसला सुनाया था. हालांकि 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बरकरार रखा, एक दिन बाद जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के इस्तीफा देने तक देश भर में रोज प्रदर्शन करने का आह्वाहन किया. देश भर में हड़तालें चल रही थीं. जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई सहित कुछ नेताओं के नेतृत्व में व्यापक विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था. सिंहासन छोड़ो कि जनता आती है के नारे ने चारों औऱ से सरकार को घेरा हुआ था। इंदिरा गांधी आसानी से सिंहासन खाली करने के मूड में नहीं थीं. संजय गांधी कतई नहीं चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से सत्ता जाए. उधर विपक्ष सरकार पर लगातार दबाव बना रहा था. नतीजा ये हुआ कि इंदिरा ने 25 जून की रात देश में आपातकाल लागू करने का फैसला लिया. आधी रात इंदिरा ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद से आपाताकाल के फैसले पर दस्तखत करवा लिया.
आपातकाल में जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में पूरा विपक्ष एकजुट हो गया. पूरे देश में इंदिरा के खिलाफ आंदोलन छिड़ गया. सरकारी मशीनरी विपक्ष के आंदोलन को कुचलने में लग गई थी. अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुलायम सिंह यादव समेत विपक्ष के तमाम नेता जेल में ठूंस दिए गए. संजय गांधी की मनमानियां सीमा पार कर गई थीं. उनके इशारे पर न जाने कितने पुरुषों की जबरन नसबंदी करवा दी गई थी.
सरकार ने पूरे देश को एक बड़े जेलखाना में बदल दिया गया था. आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था.
जेपी की लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंची. इंदिरा को सिंहासन छोड़ना पड़ा. मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ।
1977 में फिर आम चुनाव हुए इन चुनावो में कांग्रेस बुरी तरह हारी. इंदिरा गांधी खुद रायबरेली से चुनाव हार गईं।
एक लंबे काले अंधकार के बाद नई रानीतिक सुबह आयी और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी लेकिन एमरजेंसी का वह काला अध्याय हमेशा भारतीय लोकतंत्र पर कलंक बना रहेगा हम प्रभु से प्रार्थना करते है कि भारत को ऐसा दिन दोबारा देखने को न मिले।
इस अवसर पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय टंडन ने भी आपातकाल के बारे विचार व्यक्त किया उन्होंने बताया कि इमरजेंसी के दौरान उनके पिता स्वर्गीय श्री बलरामजी दास टंडन भी 19 महीने जेल में रहे और उस समय उन पर तथा उनके परिवार ने जो यातनाएं झेली उसके बारे में अपने अनुभव को बताया। इस अवसर पर इमरजेंसी के भुक्तभोगी देशराज टण्डन ने भी अपने अनुभव सांझा किये।