उभरने लगा प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन का असर
CHANDIGARH: पूर्व मेयर एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुभाष चावला को चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपे जाने का शुरुआती और स्वाभाविक असर पार्टी में उभरना शुरू हो गया है। चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के दावेदार और चावला विरोधी कांग्रेसजन पार्टी हाईकमान के ताजा फैसले से नाराज हो गए हैं तो निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा व उनके समर्थक अभी तक सकते में हैं। इस बीच, पार्टी में सबसे बड़ा सवाल जो खड़ा हो रहा है, वो ये है कि क्या चंडीगढ़ की सियासत में पवन बंसल युग खत्म हो रहा है? पिछले तीन दिन के भीतर चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस में तेजी से घूमे घटनाक्रम में ये सवाल वीरवार को तब और ज्यादा बड़ा हो गया जब पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल ने अपने खेमे के असंतुष्टों की पीठ पर हाथ फेरने के बजाय उनको नए हालात से समझौता करने का निर्देश दे दिया। ऐसे में अब कांग्रेस ही नहीं, बल्कि शहर की सियासत में भी नए समीकरण उभरने के संकेत मिल रहे हैं। इस साल के नगर निगम चुनाव से नई राजनीतिक करवट लेने के मूड में बैठे पूर्व केंद्रीय मंत्री हरमोहन धवन की नजरें कांग्रेसी असंतुष्टों पर लग गई हैं।
छाबड़ा के खिलाफ एक साल पहले हुई गोलबंदी
चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व बदलाव की अटकलें पिछले करीब एक साल से लगनी शुरू हो गई थीं। क्योंकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर 2015 से काबिज रहे प्रदीप छाबड़ा पर पार्टी में सबको साथ लेकर न चलने और संगठन मजबूत न कर पाने के आरोप लग रहे थे। कुछ वरिष्ठ कांग्रेस नेता छाबड़ा के नेतृत्व को अस्वीकार कर घर बैठ गए तो बाकी असहयोग पर उतारू थे। नगर निगम चुनाव-2021 के मुहाने पर प्रदेश नेतृत्व बदलने की मांग पार्टी में ज्यादा जोर पकड़ गई। कहा गया कि निगम चुनाव में जीत के लिए प्रदेश नेतृत्व बदलना जरूरी है। चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर जिन वरिष्ठ नेताओं ने खुलकर दावेदारी पेश की, उनमें नगर निगम के नेता विपक्ष देविंदर सिंह बबला सबसे आगे थे, जबकि पूर्व डिप्टी मेयर एचएस लक्की और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पवन शर्मा भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की दौड़ में थे। पूर्व मेयर एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुभाष चावला का भी इन्हें समर्थन प्राप्त था लेकिन अध्यक्ष पद पर खुद की दावेदारी पर चावला हमेशा ना-नुकुर करते रहे।
अचानक चावला की नियुक्ति ने सबको चौंकाया
गत मंगलवार की शाम को कांग्रेस हाईकमान ने पूर्व मेयर एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुभाष चावला को अचानक चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मनोनीत किया तो पूरी पार्टी चौंक गई। प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा व उनके गुट के समर्थक तो सकते में पड़ गए। इस नियुक्ति को लेकर वीरवार को छाबड़ा गुट और प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदार रहे कांग्रेसजनों की नाराजगी उभर आई। बताया जाता है कि तमाम असंतुष्ट व चावला विरोधी कांग्रेसजन वीरवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल से मिले और खुलकर अपना असंतोष जताया लेकिन उम्मीद के विपरीत बंसल से उन्हें कोई राहत नहीं मिली, बल्कि बंसल ने नए प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चावला के कार्यभार ग्रहण करने के दौरान सभी को उपस्थित रहने का दो टूक निर्देश दे दिया।
चंडीगढ़ में एक-दूसरे के पर्याय बने कांग्रेस और बंसल
पूरा शहर जानता है कि पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से चंडीगढ़ की कांग्रेसी सियासत पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल की उंगलियों पर घूमती रही है। अपने राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए बंसल ने चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस संगठन पर हमेशा अपना नियंत्रण बनाए रखा। इसके लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष से लेकर पार्टी के तमाम अनुसांगिक संगठनों के प्रधान पद तक बंसल अपनी पसंद के नेता को ही बैठाते रहे। इसीलिए प्रदेश संगठन पर बंसल की पकड़ कभी ढीली नहीं हुई। यही कारण है कि चंडीगढ़ में कांग्रेस और पवन बंसल एक-दूसरे के पर्याय माने जाते रहे। सबसे लंबे समय तक चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे बीबी बहल भी बंसल की नजदीकियों और विश्वास पात्र होने के कारण ही इस पद तक पहुंचे। यह बात अलग है कि बाद के कुछ सालों में बंसल व बहल के रिश्ते मधुर नहीं रह गए थे लेकिन बहल ने बंसल के राजनीतिक हितों को कभी चोट नहीं पहुंचाई।
संगठन को अपने काबू में रखना बंसल की सियासी प्राथमिकता रही
चूंकि बंसल 1999 से लगातार चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के दावेदार रहे और चुनाव प्रबंधन भी संगठन के बिना संभव नहीं है, इसलिए संगठन को अपने काबू में रखना उनकी सियासी प्राथमिकता रही और यह उनके लिए कितनी महत्वपूर्ण थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाइये कि 2015 में बीबी बहल ने जब प्रदेश प्रधान की कुर्सी छोड़ी तो उन्होंने पार्टी में वरिष्ठताक्रम को नजरंदाज कर अपने नजदीकी और विश्वास पात्र रहे पूर्व मेयर प्रदीप छाबड़ा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया। भले ही इससे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के घर बैठ जाने या निष्क्रिय हो जाने का आभास उन्हें भलीभांति था लेकिन शहर में कांग्रेस का पर्याय बन जाने और तब तक केंद्र तक मजबूत हो जाने के कारण स्थानीय स्तर पर बंसल का विरोध जताने की हिम्मत कोई छाबड़ा विरोधी भी नहीं कर सका। लिहाजा, बंसल चंडीगढ़ में कांग्रेस के सर्वोच्च नेता बने रहे।
अब राज्यसभा में जाएंगे पवन बंसल
अब पिछले दिनों पवन बंसल को कांग्रेस हाईकमान ने पहले राष्ट्रीय महासचिव (प्रशासन), फिर राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बनाकर उनका सियासी कार्य क्षेत्र ही बदल दिया तो बंसल की प्राथमिकताएं भी बदलती दिख रही हैं। इन दोनों पदों का नेचर ऐसा है कि बंसल अब चाहकर भी चंडीगढ़ में पहले की तरह पूरे समय सक्रिय नहीं रह सकते हैं। दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय ही अब उनका वर्क प्लेस है। यही कारण है कि दिल्ली में अपनी नियुक्ति के बाद बंसल स्थानीय स्तर पर दो बार सार्वजनिक कार्यक्रमों, यहां तक कि पंचकूला नगर निगम चुनाव प्रचार के दौरान भी उपस्थित तो हुए लेकिन वह चंडीगढ़ के पूर्व सांसद कम, कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता के रूप में ही ज्यादा देखे गए। माना जा रहा है कि पवन बंसल को उनके लोकसभा क्षेत्र (चंडीगढ़) से दिल्ली खींच लेने से यहां होने वाले उनके सियासी नुकसान की भरपाई भी कांग्रेस हाईकमान आने वाले दिनों में उन्हें राज्यसभा में भेजकर पूरी कर देगी। हाल ही में राज्यसभा की 4 कांग्रेसी सीटें खाली भी हो चुकी हैं। बंसल से पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बनाए गए अहमद पटेल के भी अपने भरूच (गुजरात) लोकसभा क्षेत्र में निष्क्रिय हो जाने की भरपाई पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में भेजकर की थी। लिहाजा, कांग्रेस मुख्यालय की जिम्मेदारी ने पवन बंसल का कद इतना बड़ा कर दिया है कि चंडीगढ़ प्रदेश संगठन उसके आगे बौना सा हो गया है। या कहें कि सांसद बनने के रास्ते में उनके लिए अब चंडीगढ़ प्रदेश संगठन कोई विषय नहीं रह गया है। यही कारण है कि बंसल ने पहली बार चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नई नियुक्ति में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
इस बात का चावला को मिला फायदा
माना जा रहा है कि चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर यदि बंसल अड़ते या लड़ते तो इसका असर दिल्ली में उनके कद को ही प्रभावित करता। पूर्व मेयर एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुभाष चावला को इन्हीं सियासी हालात का फायदा मिला और चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने सुभाष चावला से अपनी पुरानी नजदीकियों के चलते चावला का नाम चंडीगढ़ प्रदेश अध्यक्ष के लिए संस्तुत किया तो पवन बंसल अपनी असहमति नहीं जता पाए। चंडीगढ़ के पूर्व सांसद के नाते दिल्ली में सम्मानपूर्वक ली गई राय में बंसल ने हरीश रावत की संस्तुति को हरी झंडी दे दी। चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस संगठन को लेकर बंसल की बदली मनस्थिति को इस तरह भी समझा जा सकता है कि पहली बार चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति की घोषणा बंसल ने स्वयं नहीं की। न ही नए अध्यक्ष के साथ बंसल सबके सामने आए, बल्कि उसी दिन दिल्ली से लौटकर बंसल घर में निरुत्साहित ही रहे। अपनी नियुक्ति की सूचना पाकर नए अध्यक्ष सुभाष चावला खुद पवन बंसल का शिष्टाचारपूर्वक धन्यवाद करने उनके घर पहुंचे। बंसल की यही ताजा मनस्थिति अब निवर्तमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा और उनके गुट तथा चावला विरोधियों को अखर रही है।
धवन की सियासी नर्सरी ने दिए हैं कांग्रेस को कई नेता
इधर, चंडीगढ़ की सियासत में हाशिए पर चल रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री हरमोहन धवन की नजरें भी कांग्रेस में पनपे नए असंतोष पर टिक गई हैं। माना जा रहा है कि धवन नगर निगम चुनाव-2021 में अपने पुराने राजनीतिक संगठन चंडीगढ़ विकास मंच को जीवित करने के मूड में हैं। पिछले दिनों उन्होंने चंडीगढ़ विकास मंच के बैनर तले ही किसान आंदोलन के समर्थन में धरना-प्रदर्शन किया था। खास बात यह है कि हरमोहन धवन की सियासी नर्सरी से ही चंडीगढ़ में कांग्रेस को कई कद्दावर नेता मिले हैं। पवन बंसल को शुरुआती दौर में राजनीतिक तौर पर मजबूत करने में हरमोहन धवन की सियासी नर्सरी का ही बड़ा हाथ रहा है। कुछ मौजूदा कांग्रेस नेता तो पहले धवन के चंडीगढ़ विकास मंच का झंडा भी उठा चुके हैं। अब इनमें ज्यादातर चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस के ताजा हालात से असंतोष में डूबे हैं। इसमें वो नेता भी हैं, जिनकी नजरें चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर थीं लेकिन अब पूर्व केंद्रीय मंत्री हरमोहन धवन की निगाहें इन्हें चंडीगढ़ विकास मंच के लिए सियासी संजीवनी के रूप में देख रही हैं। यानी निगम चुनाव से पहले चंडीगढ़ में राजनीतिक समीकरणों की भी उलट-पलट देखी जा सकती है।
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