ANews Office: 9 दिन तक हिचक के बाद कल देर शाम अंततः शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब में अपनी राजनीति का रास्ता भारतीय जनता पार्टी से अलग कर लिया। मन भेद तो भाजपा-शिअद के बीच पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से ही गहरा गए थे लेकिन माना यह जा रहा था कि बड़े बादल यानी पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के होते हुए भाजपा शिअद से कभी अलग नहीं होगी। भाजपा ने बड़े बादल के सम्मान में इसे कई मौकों पर साबित भी किया लेकिन साथ छोड़ने की पहल शिअद की तरफ से ही हो जाएगी, यह 9 दिन पहले किसी ने सोचा भी नहीं था। इसके बाद अब पंजाब की राजनीति में शिरोमणि अकाली दल को लेकर प्रश्न तो कई खड़े हो गए हैं लेकिन बड़ा सवाल अभी ये बन गया है कि शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल क्या मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के ट्रैप में फंस गए हैं ? मौजूदा सियासी हालात में राजनीतिक प्रेक्षक तो इसका जवाब हां में ही दे रहे हैं लेकिन सुखबीर बादल इस प्रश्न का अस्तित्व कैसे खत्म करेंगे, यह देखना इससे भी ज्यादा दिलचस्प होगा।
कोरोनाकाल में भी अपना प्रबंध कौशल बखूबी दिखाया कैप्टन ने
कोरोनाकाल शुरू होते ही पंजाब में कोविड-19 के नियंत्रण को लेकर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कई मौकों पर साहसिक व सबसे पहले फैसले करके अपने प्रबंध कौशल का शानदार परिचय दिया। कोरोना नियंत्रण को लेकर कैप्टन की कुछ पहलों को तो खुद केंद्र सरकार ने अपनाया तथा अन्य राज्यों ने भी फॉलो किया लेकिन जहरीली शराब कांड व नकली बीजों जैसे मुद्दों ने कोरोनाकाल में भी अकाली दल को कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब की कांग्रेस सरकार को घेरने का मौका दे दिया। लिहाजा, शिरोमणि अकाली दल ने पिछले दिनों कोरोनाकाल की चुनौती के बीच ही कैप्टन को खूब परेशान किया लेकिन सियासत के बड़े खिलाड़ी माने जाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मौके पर नए कृषि विधेयकों को जिस समय लपका, तब शायद कैप्टन अमरिंदर सिंह को छोड़कर किसी ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि यह मुद्दा कोरोना संकट को खूंटी पर टांगकर पंजाब की सियासत को ही उलट-पलट देगा। दो दलों की दो दशकों से ज्यादा पुरानी जिगरी दोस्ती का अंत करवा देगा और पंजाब की पंथक राजनीति के शिरोमणि माने जाने वाले अकाली दल के सामने अपना अस्तित्व बचाने की चुनौती खड़ी कर देगा।
अकाली दल की कमर तोड़ने को खड़ा हुआ किसान आंदोलन !
खेत-मजदूर व किसान की हिमायती बनने वाले अकाली दल को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर निकलने के लिए मजबूर करने के पीछे मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, उनकी सरकार के मंत्रियों तथा कांग्रेस नेताओं की लगातार तीखी बयानबाजी को ज्यादा जिम्मेदार माना जा रहा था, क्योंकि इस बयानबाजी की बदौलत ही किसान संगठन भी अकाली दल के खिलाफ लामबंद होने लगे थे। हरसिमरत कौर बादल के केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर निकलते ही कांग्रेस को इस मुद्दे की ताकत का अहसास ज्यादा हो गया। लिहाजा, पंजाब में किसान आंदोलन ही खड़ा कर दिया गया। राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि किसानों का यह आंदोलन नए कृषि विधेयकों की वापसी की मांग से ज्यादा पंजाब में अकालियों की कमर तोड़ने के लिए खड़ा किया गया। ये किसान आंदोलन का ही नतीजा है कि दो दिन के अंदर अकाली दल के गठबंधन से पैर उखड़ गए। माना जा रहा है कि भाजपा से गठबंधन टूटने के साथ ही अकाली दल की शहरी जमीन खिसक गई है। अब गांव की जमीन बचाने के लिए अकाली दल क्या रणनीति अपनाएगा और किसान आंदोलन कौनसी करवट लेगा, यह देखना भी दिलचस्प होगा। फिलहाल, ताजा राजनीतिक घटनाक्रम से कांग्रेस की बांछें खिल गई हैं तथा पार्टी में कैप्टन अमरिंदर सिंह का कद और बढ़ गया है।
क्या भाजपा में वापसी करेंगे नवजोत सिद्धू ?
दूसरी तरफ, अब सबकी नजर पंजाब के पूर्व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू पर भी टिक गई है। राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहा है कि क्या नवजोत सिंह सिद्धू अब भाजपा में अपनी वापसी करेंगे ? क्योंकि सिद्धू के लिए कांटा अकाली दल था। अकाली दल से तल्खियों के कारण ही वह भाजपा को छोड़ गए थे लेकिन इसके बाद भी भाजपा के प्रति उन्होंने कभी कड़े शब्दों का प्रयोग नहीं किया है। एक हकीकत यह भी है कि कांग्रेस में जाकर भी वह बहुत खुश नहीं दिखे। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से भी उनकी पटरी नहीं बैठी। वह कांग्रेस में लगातार असहज दिख रहे हैं। पाकिस्तान दौरे के बाद तो वह कांग्रेस में ही निशाने पर आ गए थे। उन्होंने सरकार में मंत्री पद तक छोड़ दिया। हालांकि कांग्रेस हाईकमान तक ने सिद्धू व कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच सुलह कराने की कोशिश की लेकिन उसके बाद से सिद्धू राजनीतिक अज्ञातवास में ही चले गए। हाल ही में जब राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस संगठन में बदलाव हुआ तथा उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को पंजाब कांग्रेस का संगठन प्रभारी बनाया गया तो नवजोत सिंह सिद्धू करीब डेढ़ साल बाद तीन दिन पहले अमृतसर में इन्हीं नए कृषि विधेयकों को लेकर किसानों के आंदोलन में शरीक हुए। खास बात यह है कि सिद्धू ने इस दौरान भी सिर्फ किसानों के साथ खड़े होने की बात कहते हुए भाजपा के प्रति कड़े शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया।
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