नव-निर्वाचित सभी 35 पार्षद कानूनी और तकनीकी तौर पर निगम सदन में किसी राजनीतिक दल के सदस्य नहीं

सभी विजयी उम्मीदवारों को जारी निर्वाचन सर्टिफिकेट में चुनाव में उतारने वाली राजनीतिक पार्टी के नाम का उल्लेख ही नहीं

चंडीगढ़ नगर निगम पर लागू मौजूदा कानून में राजनीतिक पार्टियों और  दल-बदल विरोधी प्रावधान भी नहीं

CHANDIGARH: चंडीगढ़ नगर निगम के छठे आम चुनाव में 35 वार्डों में से 14 में आम आदमी पार्टी (आप), जबकि 12 में भाजपा के प्रत्याशी जीते। 8 वार्डों में कांग्रेस, जबकि 1 में शिरोमणि अकाली दल का उम्मीदवार विजयी रहा।  बेशक सीटों के लिहाज से आम आदमी पार्टी इस चुनाव में सबसे आगे रही, परन्तु जहां तक वोट प्रतिशत का विषय है तो उसमें  कांग्रेस ने बाजी मारी, जिसका मत प्रतिशत  29.79 रहा। भाजपा 2.30 फीसदी के साथ दूसरे स्थान  पर, जबकि आम आदमी पार्टी 27.08 फीसदी वोट लेकर तीसरे नंबर  पर रही।

अब चंडीगढ़ नगर निगम सदन में अगले मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव नव-निर्वाचित 35  पार्षदों द्वारा एवं उनमें से ही किया जाएगा, जिसके लिए बहुमत की संख्या 19 है, क्योंकि सदन की बैठकों में  चंडीगढ़ की स्थानीय लोकसभा सांसद किरण खेर, जो भाजपा से हैं, उन्हें भी वोट देने  का अधिकार है। ऐसे में भाजपा की कुल वोटें 12 जमा 1 अर्थात 13 बन जाती हैं। अगर अकाली दल का एक पार्षद भी भाजपा के साथ मिल जाए तो यह संख्या 14 होती है।

दूसरी ओर, अगर आम आदमी पार्टी के 14 और कांग्रेस के 8 नव-निर्वाचित पार्षदों के मध्य किसी प्रकार का समझौता हो जाता है तो दोनों पार्टियों के पार्षदों की संख्या 22 हो जाती है। इस प्रकार मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर पदों पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के पार्षद आसानी से निर्वाचित हो सकते हैं।

वैसे भी प्रथम वर्ष में नगर निगम मेयर का पद महिला पार्षद के लिए आरक्षित होता है। इस बार चुनाव में निर्वाचित कुल 13 महिला पार्षदों में से 7 आम आदमी पार्टी और 4 कांग्रेस की हैं, जबकि दो भाजपा की हैं। हालांकि मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग से भी इंकार नहीं किया जा सकता और पार्षदों में दल-बदल की भी सम्भावना है।

चंडीगढ़ नगर निगम में हालांकि यूटी चंडीगढ़ के प्रशासक द्वारा 9 पार्षद भी मनोनीत किए जाते हैं परन्तु उनका वोटिंग अधिकार अगस्त-2017 में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर समाप्त कर दिया था। इसके विरूद्ध दायर अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। हालांकि हाईकोर्ट के निर्णय पर कोई स्टे नहीं दिया गया था। अगर 9 मनोनीत पार्षदों का वोटिंग अधिकार कायम होता तो समीकरण भाजपा के पक्ष में बन सकते थे, जो अब संभव नहीं है। कई वर्षों तक अगर केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी को चंडीगढ़ नगर निगम में बहुमत नहीं मिलता था तो 9 मनोनीत पार्षदों की वोटों के कारण उसका मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर पदों पर कब्जा हो जाता था।

इस बीच, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि चूंकि सभी 35 वार्डों से निर्वाचित पार्षदों को चुनाव जीतने के बाद  उनके वार्ड के संबंधित निर्वाचन अधिकारी (रिटर्निंग अफसर-आर.ओ.) से जो निर्वाचन प्रमाण-पत्र (इलेक्शन सर्टिफिकेट) प्राप्त हुआ है, उसमें उनको  चुनाव में उतारने वाले राजनीतिक दल जैसे आम आदमी पार्टी, भाजपा, कांग्रेस और अकाली दल का उल्लेख तक नहीं किया गया है। इसलिए कानूनी और तकनीकी तौर पर सभी नव-निर्वाचित पार्षद निगम सदन में किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य नहीं हैं।

हेमंत ने बताया कि इलेक्शन सर्टिफिकेट यूटी चंडीगढ़ प्रशासन के स्थानीय स्वशासन विभाग द्वारा द्वारा वर्ष 1995 में बनाए गए चंडीगढ़ नगर निगम (पार्षदों का निर्वाचन) नियमों, 1995 के नियम संख्या 75 के अंतर्गत एवं फॉर्म नंबर 19 के प्रारूप में नगर निगम चुनाव में वार्डों से जीतने वाले उम्मीदवारों को संबंधित रिटर्निंग अफसर द्वारा जारी किया जाता है।

इसी प्रकार राज्य चुनाव आयोग द्वारा नगर निगम चुनाव के संबंध में जारी नोटिफिकेशन में भी नव-निर्वाचित पार्षदों के राजनीतिक दल का उल्लेख नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उनके निर्वाचन सर्टिफिकेट में ऐसा नहीं डाला गया है।

हेमंत ने नगर निगम चुनाव से पहले राज्य निर्वाचन आयोग चंडीगढ़ यूटी के प्रशासक, उनके एडवाइजर, चंडीगढ़ के गृह एवं स्थानीय स्वशासन विभाग के सचिव एवं अन्य को प्रतिवेदन और फिर कानूनी नोटिस भेजकर चंडीगढ़ नगर निगम के आम चुनाव राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों पर नहीं करवाने के बारे में लिखा था, क्योंकि इस बारे में चंडीगढ़ नगर निगम पर लागू कानून में प्रावधान नहीं है।  

लिहाजा, नगर निगम चंडीगढ़ के सभी 35 वार्डों से नव-निर्वाचित पार्षद  दल-बदल करने के लिए पूर्णतया स्वतंत्र हैं। वैसे भी चंडीगढ़ पर लागू पंजाब नगर निगम कानून (चंडीगढ़ में विस्तार) अधिनियम, 1994, जैसा  कि आज तक संशोधित है, में न तो राजनीतिक पार्टी/दल का उल्लेख और न ही निर्वाचित पार्षदों द्वारा दल-बदल विरोधी कोई प्रावधान है। इस प्रकार हर  पार्षद बेरोक-टोक किसी को भी समर्थन दे सकता है। बेशक उसको चुनाव में उतारने वाली पार्टी कोई भी व्हिप या निर्देश जारी करे, जिसकी अवहेलना करने पर पार्षद की नगर निगम सदस्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उपरोक्त 1994 कानून की धारा 13 , जो पार्षदों की अयोग्यता से संबंधित है, में आज तक दल-बदल करने पर सदन से अयोग्यता को कोई  उल्लेख नहीं है।

हालांकि करीब चार वर्ष पूर्व फरवरी-2018 में चंडीगढ़ के तत्कालीन गृह एवं स्थानीय स्वशासन सचिव अनुराग अग्रवाल द्वारा चंडीगढ़ नगर निगम कानून में निर्वाचित पार्षदों द्वारा दल-बदल विरोधी प्रावधान सहित कई संशोधन करने सम्बन्धी एक ड्राफ्ट बिल चंडीगढ़ नगर निगम की वेबसाइट पर अपलोड कर सार्वजनिक किया गया था परन्तु दुर्भाग्यवश वह सिरे नहीं चढ़ पाया। इस ड्राफ्ट बिल में चंडीगढ़ नगर निगम कानून, 1994  की धारा 13 में संशोधन और कानून में एक नई चौथी अनुसूची शामिल करना प्रस्तावित था, जो दल-बदल विरोधी प्रावधानों से संबंधित थी।

हेमंत ने कानूनी जानकारी देते हुए बताया कि भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची में जो दल बदल विरोधी/रोकथाम कानून है, वह केवल संसद और राज्य विधानमंडलों पर लागू होता है। शहरी स्थानीय निकाय (म्युनिसिपल) संस्थानों जैसे नगर निगमों/परिषदों/पालिकाओं पर नहीं। इसलिए नगर निकाय के विपक्षी पार्षद कभी भी औपचारिक या अनौपचारिक रूप से मेयर/अध्यक्ष में खेमों/पार्टियों में शामिल हो सकते हैं। हालांकि अगर केंद्र  सरकार चाहती तो बीते वर्षों में संसद से चंडीगढ़ पर लागू नगर निगम कानून में संशोधन  करवाकर  पार्षदों द्वारा दल-बदल करने पर अंकुश लगा सकती थी, जैसे हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा इस वर्ष किया गया है।  

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