याचिका में मांगा जन्मभूमि की 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक
ANews Office: अयोध्या में बाबरी ढांचा ध्वस्त होने के बाद एक नारा दिया गया था, ‘ये तो अभी झांकी है, मथुरा-काशी बाकी है।’ इस नारे की गूंज अब मथुरा में सुनाई देने लगी है। क्योंकि अयोध्या का श्रीराम जन्म भूमि विवाद सुप्रीम कोर्ट से निपट जाने के बाद अब मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला भी कोर्ट में पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन सहित छह अन्य भक्तों ने मथुरा कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर यहां मुगल काल में बनी शाही मस्जिद को हटाने की अपील की है। श्रीकृष्ण विराजमान नाम से दायर किए गए सिविल मुकदमे में 13.37 एकड़ जमीन का मालिकाना हक मांगा गया है। यह भी कहा गया है कि जिस जगह पर शाही मस्जिद बनी है, उसी स्थान पर कंस का कारागार था, जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
तीन बार टूटा व चार बार बना श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर
इतिहासकारों के मुताबिक सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म स्थान पर बनवाए गए भव्य मंदिर पर महमूद गजनवी ने सन 1017 ई. में आक्रमण कर इसे लूटने के बाद तोड़ दिया था। श्रीकृष्ण जन्म स्थान मंदिर तीन बार तोड़ा और चार बार बनाया जा चुका है।
पिछले महीने किया गया श्रीकृष्ण जन्मभूमि निर्माण न्यास का गठन
पिछले माह यानी अगस्त में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए श्रीकृष्ण जन्मभूमि निर्माण न्यास का गठन किया गया है। इस न्यास से देश के 14 राज्यों के 80 संतों को जोड़ा गया है। न्यास के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य देवमुरारी बापू ने मीडिया को बताया कि न्यास 23 जुलाई को हरियाली तीज के दिन रजिस्टर्ड कराया गया। अब मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को जमीन देने को गलत बताते हुए सिविल जज सीनियर डिवीजन छाया शर्मा की अदालत में दावा पेश किया गया है।
1968 का समझौता बताया गलत
यह केस भगवान श्रीकृष्ण विराजमान, कटरा केशव देव खेवट, मौजा मथुरा बाजार शहर की ओर से लखनऊ निवासी वकील रंजना अग्निहोत्री, विष्णु शंकर जैन व त्रिपुरारी त्रिपाठी, दिल्ली निवासी कृष्ण भक्त प्रवेश कुमार, करुणेश कुमार शुक्ला व शिवा जी सिंह, सिद्धार्थ नगर निवासी कृष्ण भक्त राजमणि त्रिपाठी की ओर से दायर किया गया है। दावे में कहा गया है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन को लेकर समझौता हुआ था। इसमें तय हुआ था कि मस्जिद जितनी जमीन पर बनी है, बनी रहेगी। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन का कहना है कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, वह श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है। ऐसे में सेवा संघ द्वारा किया गया समझौता गलत है।
Place of worship Act की रुकावट
वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया कि याचिका में अतिक्रमण हटाने और मस्जिद को हटाने की मांग की गई है। हालांकि इस केस में Place of worship Act की रुकावट है। इस एक्ट के अनुसार आजादी के दिन 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था, उसी का रहेगा। इस एक्ट के तहत सिर्फ श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को छूट दी गई थी।
ट्रस्ट का किनारा
श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ट्रस्ट के सचिव कपिल शर्मा ने मीडिया से कहा है कि ट्रस्ट से इस याचिका या इससे जुडे़ लोगों का कोई लेना-देना नहीं है। इन लोगों ने अपनी तरफ से याचिका दायर की है। हमें इससे कोई मतलब नहीं है। दरअसल, विष्णु शंकर जैन हिंदू महासभा के वकील रहे हैं और इन्होंने रामजन्मभूमि केस में हिंदू महासभा की पैरवी की थी, जबकि रंजना अग्निहोत्री लखनऊ की वकील हैं। बताया जा रहा है कि जिस तरह राम मंदिर मामले में नेक्स्ट टू रामलला विराजमान का केस बनाकर कोर्ट में पैरवी की गई थी, उसी तरह नेक्स्ट टू भगवान श्रीकृष्ण विराजमान के रूप में याचिका दायर की गई है।
क्या है 1968 समझौता ?
1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर तय किया गया था कि यहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा। इसके बाद 1958 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ नाम की संस्था का गठन किया गया। कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था, लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं। इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया। इसके तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और मुस्लिम पक्ष को उसके बदले पास की जगह दे दी गई थी।
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