Neeraj Adhikari
एक चुनाव में उम्मीदवार बने नेता जी जब वोट मांगने के लिए अपने क्षेत्र की झुग्गी बस्ती या किसी गांव में जाते थे तो अपनी जेब में टॉफियां रख लेते थे और जो भी बच्चा रास्ते में मिलता था उसे वह टॉफी जरूर देते थे। अब आप सोच रहे होंगे कि चुनाव में बच्चों को तो वोट डालना नहीं है तो यह उम्मीदवार बच्चों को टॉफी क्यों देते थे। दरअसल, इसके पीछे एक बड़ी सोच उस वोटर को टारगेट करने की थी, जो न केवल अपने वोट की, बल्कि अपने परिवार के वोट की भी दिशा बदलवा सकता है। यह वोटर है महिला। टॉफी वैसे है तो एक बहुत छोटी चीज लेकिन दोनों हाथों में टॉफियां पाकर बच्चों की जो खुशी है, वह उसे बहुत बड़ी है और उससे भी ज्यादा बड़ी है अपने बच्चों की खुशी को देखकर खुश होती है उसकी मां की खुशी। बच्चे और मां के बीच का जो संबंध होता है, उसको आप भी बहुत बेहतर तरीके से जानते हैं। नतीजा यह हुआ कि यह उम्मीदवार चुनाव जीत गए और आप यह जानकर हैरान होंगे कि उनके लिए सबसे ज्यादा वोटिंग महिलाओं ने की। इससे भी ज्यादा आश्चर्य आपको यह जानकर होगा कि टॉफी जैसी छोटी सी चीज से बड़ी जीत का यह मंत्र उस समय चुनाव प्रबंधन देख रहे आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस उम्मीदवार को दिया था।
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दरअसल, यह टॉफी वाला घटनाक्रम मैंने आपको इसलिए बताया ताकि आपको यह पता चल सके कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कितनी गहराई से और कितने छोटे-छोटे तरीकों से चुनाव का बड़ा प्रबंध करते हैं। अपने सियासी प्रबंध कौशल से ही मोदी न केवल खुद चुनाव जीतते रहे हैं, बल्कि अपनी पार्टी के दूसरे उम्मीदवारों को भी चुनाव जीतने में मदद करते हैं। 9 साल पहले किसने सोचा था कि देश का कोई प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश में सफाई और घर-घर शौचालय की बात करेगा। ये दोनों ही चीजें देश के हर व्यक्ति के लिए तब महत्व के मामले में बहुत छोटी थीं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि यह दोनों चीजें देश में कितनी बड़ी समस्या हैं। जाहिर है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन दोनों ही चीजों को देश का अभियान बना दिया तो उसका असर भी बहुत बड़ा हुआ। देश को अहसास हुआ कि स्वच्छता कितनी जरूरी है और गरीब महिलाओं को अहसास हुआ कि पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने खुले में शौच जाने की उनकी बड़ी पीड़ा पर कितना बारीकी से ध्यान दिया। यह समस्या किसी एक खास समुदाय की महिलाओं की नहीं थी, यह समस्या हर वर्ग की उस महिला की थी जो खुले में शौच जाने के लिए मजबूर होती थी। ऐसे ही मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक कोई बड़ा मुद्दा था ही नहीं लेकिन मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक बहुत बड़ी पीड़ा थी।
तो कहने का मतलब यह है कि लोग या कहूं कि विपक्ष के नेता जिन चीजों को छोटा समझते हैं या जिनके बारे में सोच भी नहीं पाते, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनको इस तरह उठा लेते हैं कि वह चीज देश की राजनीति और चुनाव के मुद्दों के केंद्र में आ जाती हैं। अब किसी को यह अंदाजा भी नहीं था कि नए संसद भवन के पहले सत्र में ही मोदी सरकार 27 साल से रुके हुए महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का बिल लेकर आ जाएगी। सरकार न केवल यह बिल लेकर आई बल्कि पूरा विपक्ष इसका समर्थन करने के लिए मजबूर हो गया और संसद से महिला आरक्षण का बिल सर्वसम्मति से पारित होने के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से ये कानून भी बन गया।
अब देश की राजनीति में इस बिल को लेकर जो हल्ला हुआ, उसे आप सबने तमाम माध्यमों से देखा भी और सुना भी। विपक्ष आज भी सबसे बड़ा सवाल यह उठा रहा है कि महिला आरक्षण को 2024 के लोकसभा चुनाव से ही क्यों लागू नहीं किया जा रहा, जबकि भाजपा और उसके नेता यहां तक कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बता चुके हैं कि इसे नई जनगणना और नए परिसीमन के बाद ही और 2029 के लोकसभा चुनाव से लागू किया जा सकेगा।
यहां आपको बता दूं कि देश में आम जनगणना हर 10 साल बाद होती है और पिछली जनगणना 2011 में हुई थी। इस हिसाब से 2021 में नई जनगणना होनी थी लेकिन कोरोना महामारी के कारण 2021 में यह जनगणना नहीं हो पाई थी। जनगणना की प्रक्रिया भी बहुत लंबी है। आमतौर पर पूरा डाटा मुकम्मल होने में 4 से 5 साल का वक्त लग जाता है लेकिन देश यह भी जानता है कि मोदी सरकार अगर ठान ले तो तीन साल से भी कम समय में जब संसद की नई इमारत बनाकर खड़ा कर सकती है तब इसी संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए 2024 के चुनाव तक नई जनगणना और परिसीमन जैसी औपचारिकता पूरी करना मोदी सरकार के लिए कौन सी बड़ी बात थी। महिला आरक्षण बिल पास करने के लिए प्रचंड बहुमत वाली मोदी सरकार के पास पूरे 9 साल थे। कभी भी इस बिल को लाकर संसद से पास कर सकती थी लेकिन नहीं किया।
मोदी सरकार महिला आरक्षण को 2029 के चुनाव से ही लागू करने की बात क्यों कह रही है। इसके पीछे जनगणना व परिसीमन के अलावा किसी ने भी कुछ नहीं बताया है लेकिन आज मैं आपको बताता हूं कि इसके पीछे कौन सी बड़ी सोच है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बिल को जिस तरह देश की राजनीति के लिए बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम और देश की राजनीति में बड़ा परिवर्तन लाने वाला फैसला बता रहे हैं, वो यूं ही नहीं है और केवल 2024 के चुनाव तक इस मुद्दे को छोड़ने वाले नहीं हैं। आप 2029 तक भी देखेंगे कि महिला आरक्षण का यह मामला किस कदर बहुत बड़ा मुद्दा बन जाएगा। 2024 के चुनाव के बाद भी एक तरफ जनगणना और दूसरी तरफ महिला आरक्षण का मुद्दा साथ-साथ चलते हुए आपको नजर आएंगे।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल अप्रत्याशित फैसला लेते हैं, बल्कि अपने फैसले से सबको चौंका भी देते हैं और भाजपा के बारे में यह प्रचलित है कि वह एक चुनाव के परिणाम के साथ ही अगले चुनाव की तैयारी शुरू कर देती है लेकिन मोदी इससे भी दो कदम आगे हैं। वह एक चुनाव की तैयारी के साथ उससे अगले चुनाव की तैयारी भी करके चलते हैं। आपको ध्यान होगा कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी से जब एक कार्यक्रम में एक स्टूडैंट ने पूछा था कि प्रधानमंत्री बनने के लिए मुझे क्या करना चाहिए तो मोदी ने तपाक से उसको उत्तर दिया था कि आप 2024 के चुनाव की तैयारी करिए। यानी कि उन्होंने अपने दिमाग में पहले ही सेट कर लिया था कि कम से कम 10 साल तक तो उनको प्रधानमंत्री के पद से कोई भी हिलाने वाला नहीं है। उनके पीएम कार्यकाल के पहले साल की समीक्षा करके मैंने खुद फेसबुक पर पोस्ट लिखकर कहा था कि मोदी इस देश में कम से कम 10 साल राज करेंगे, तब कई लोगों ने इस पर सहज विश्वास भी नहीं किया था लेकिन आज स्थिति आप सबके सामने है। देश के मौजूदा राजनीतिक हालात में मोदी और भाजपा का आत्मविश्वास बता रहा है कि अभी कम से कम 2024 में भी आएगा तो मोदी ही। इसके लिए महिला आरक्षण के अलावा सनातन का मुद्दा खुद कांग्रेस बीजेपी को पकड़ा चुकी है। राष्ट्रवाद, सीएए, विदेश नीति और हाल ही में हुए जी-20 सम्मेलन की शानदार सफलता उसके साथ पहले से ही है। जनवरी 2024 में अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ राम मंदिर का मुद्दा हमेशा की तरह फिर भाजपा के साथ जुड़ा ही होगा। एक राष्ट्रीय चुनाव का मुद्दा भी बीजेपी ने सेट कर लिया है। अगले कुछ महीनों में कई और या कुछ और ऐसे मुद्दे बन सकते हैं, जो विपक्ष के मुद्दों की तरफ देश को गंभीरता से सोचने तक न दें, क्योंकि विपक्ष में ऐसे नेताओं की कोई कमी नहीं है, जिनके बयान अपनी पार्टी के मुद्दों की धार को कमजोर कर देते हैं और भाजपा नेताओं के हमले को पैना कर देते हैं।
इसलिए बात करते हैं अब 2029 की, क्योंकि 2024 का चुनाव देश का पहला ऐसा लोकसभा चुनाव होगा जिसमें इससे अगले लोकसभा चुनाव की चर्चा ज्यादा होती दिखेगी। इसके लिए संसद के नए भवन के पहले सत्र में ही भूमिका बना दी गई है। जी हां, महिला आरक्षण बिल को मोदी सरकार 2024 से लेकर 2029 तक के चुनाव में भुनाएगी और 2029 के चुनाव में इसे लागू करके कई लोकसभा सीटों पर भाजपा के चेहरे बदल देगी, विपक्ष के भी कई चेहरे बदलवा देगी। बहुत-बहुत संभावना है कि 2029 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का भी चेहरा बदल दे। ठीक से सुन लीजिए, रिपीट कर रहा हूं कि बहुत-बहुत संभावना है कि 2029 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने पीएम उम्मीदवार का भी चेहरा बदल दे। हमारा क्या है जी चाहे जब झोला उठाकर चल देंगे, यह कहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाकई 2029 में प्रधानमंत्री पद से झोला उठाकर चल देने की घोषणा कर दें तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी, क्योंकि झोला उठाकर चल देने की बात कहकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वह प्रधानमंत्री की कुर्सी से चिपकने नहीं आए हैं और न ही इस कुर्सी से चिपकने की लालसा रखते हैं। एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया था कि लोग आपको एक प्रधानमंत्री के रूप में किन कामों के लिए याद रखें, ऐसा आप क्या करना चाहते हैं तो प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि सभी लोग जिस तरीके से अपना-अपना काम करते हैं वैसे ही मुझे यह काम मिला है तो मैं यह काम कर रहा हूं, इससे ज्यादा और कुछ नहीं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में कई ऐसे ऐतिहासिक फैसले किए हैं, कई ऐसे ऐतिहासिक काम किए हैं जिनके लिए यह देश उनको और उनके कार्यकाल को हमेशा याद रखेगा।
आपको यह भी बता दूं कि प्रधानमंत्री पद छोड़ने तक मोदी देश के ऐसे सफल प्रधानमंत्री बन जाएंगे, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के रिकॉर्ड कार्यकाल की बराबरी कर लेंगे। पंडित नेहरू लगातार 17 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे। 2029 में नरेंद्र मोदी पंडित नेहरू का रिकॉर्ड तोड़ने में केवल 2 साल पीछे रह जाएंगे लेकिन मोदी एक राष्ट्र-एक चुनाव के फार्मूले को लागू करके 2029 में होने वाले लोकसभा चुनाव को आगे खिसकाकर पंडित जवाहरलाल नेहरू का ये रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री के कार्यकाल का रिकार्ड नरेंद्र मोदी पहले तोड़ चुके हैं। मोदी लगातार 13 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहने वाले अकेले राजनेता हैं। घंटों के हिसाब से देखें तो इन दोनों ही पदों पर सबसे ज्यादा घंटों तक काम करने वाले नरेंद्र मोदी इकलौते राजनेता होंगे। अब उनकी उम्र भी 73 वर्ष की हो चुकी है और पंडित नेहरू का रिकार्ड तोड़ने तक 80 के हो जाएंगे। प्रधानमंत्री जैसे पद पर जिस सक्रियता से काम करने की परिपाटी मोदी ने शुरू की है, उसको बरकरार रखने के लिए उम्र की भी एक सीमा होती है तो मेरा मानना है कि मोदी अपनी सफलता और ऐतिहासिक फैसलों के रिकार्डों से भरा अपना झोला उठाकर चल देने के लिए 2031 को सही समय मान लेंगे। यानी मोदी पीएम पद के लिए अपना चौथा चुनाव नहीं लड़ेंगे। अब सवाल यह है कि मोदी के बाद भाजपा से प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन होगा तो उसके बारे में हम अगले वीडियो में चर्चा करेंगे।