चंडीगढ़ पेट लवर्स एसोसिएशन ने पशु-पक्षियों को लेकर लेबर चौक पर चलाया जागरूकता अभियान
90 डेसीबल से ज्यादा ध्वनि पक्षियों के लिए बेहद खतरनाक, दहशत से हो जाती है पक्षियों की मौत
CHANDIGARH, 9 NOVEMBER: दीवाली पर पटाखों का तेज शोर पक्षियों की जान तक ले सकता है। वहीं दीवाली पर होने वाले वायु प्रदूषण से 25-30 फीसदी पक्षियों का श्वसन तंत्र भी प्रभावित हो जाता है। पालतू और आवारा जानवरों पर भी पटाखों के शोर और वायु प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ता है। ट्राइसिटी में लोगों को तेज धमाकों और प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों से परहेज रखना चाहिए। इससे पर्यावरण और पशु-पक्षियों को बचाया जा सकता है। यह संदेश देते हुए चंडीगढ़ पेट लवर्स एसोसिएशन की ओर से आज शाम सेक्टर 20 के लेबर चौक पर एक अनोखा जागरूकता अभियान चलाया गया।
इस दौरान कई डॉग्स, खरगोश-बिल्लियों और विभिन्न पक्षियों के साथ एसोसिएशन ने अपना यह संदेश दिया। शाम को लगभग एक घंटा चले इस जागरूकता अभियान को चौक से गुजरते कई लोगों ने देखा और इसकी सराहना की। सेक्टर-20 की रेजीडैंट वेलफेयर एसोसिएशन के साथ मिलकर चलाए गए इस अभियान में स्कूली बच्चों ने भी भाग लिया। बच्चों और बड़ों ने हाथों में पोस्टर पकड़कर लोगों को पटाखों से दूर रहने के संदेश दिए।
चंडीगढ़ पेट लवर्स एसोसिएशन के प्रधान सेक्टर-20 निवासी विनोद कुमार उर्फ सोनू ने बताया कि जिन पटाखों की आवाज को सुनकर इंसानों के बच्चे तालियां बजाते हैं, वह आवाज पक्षियों के बच्चों की जान तक ले लेती है। दीवाली पर आतिशबाजी से होने वाली तेज आवाज से कई नन्हें पक्षियों की मौत हो जाती है। यही नहीं, एक शोध से पता चला है कि 90 डेसीबल से ज्यादा ध्वनि पक्षियों के लिए बेहद खतरनाक होती है। दीवाली की रात तेज आवाज वाले पटाखे चलाए जाते हैं। यह आवाज कई नन्हें पक्षी सहन नहीं कर पाते और दहशत से उनकी मौत तक हो जाती है। सोनू ने बताया कि पिछले वर्षों में इस तरह के कई मामले सामने आए हैं। वयस्क पक्षी भी पटाखों की तेज आवाज से सहमे रहते हैं।
सोनू ने बताया कि तेज आवाज के साथ ही वायु प्रदूषण का पक्षियों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। दीवाली के बाद 25-30 प्रतिशत पक्षियों के श्वसन तंत्र पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है। कुत्ते, गाय-भैंस आदि पशुओं में दीवाली की रात बेचैनी होती है। उनके फेफड़ों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि सर्द ऋतु के प्रारंभ में ही अधिकतर पक्षियों का प्रजनन काल पूरा हो जाता है। इस समय पक्षियों के घोंसलों में छोटे-छोटे बच्चे हैं। गौरैया, मैना, कौआ, तोता, पाइड बुशचैट आदि पक्षी शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में आबादी के आसपास ही घोसला बनाते हैं। मादा पक्षी अपने नन्हें-मुन्ने बच्चों को पाल रही होती हैं। इसी दौरान तेज धमाकों और प्रदूषण से उनके बच्चों की मौत हो जाती है।