CHANDIGARH, 9 OCTOBER: आध्यात्मिकता व्यक्ति के आंतरिक स्वभाव में परिवर्तन लाती हैं, मन अंदर से सुंदर हो जाता है, जिससे मानवता प्रभावित हो जाती है और यही आध्यात्मिकता मानवता को सुंदर बनाती है। यह वचन सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने रविवार को गुरुग्राम के सेक्टर-91 के मैदान में उपस्थित मानव परिवार को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि जब कोई ईश्वर ज्ञान से प्रबुद्ध हो जाता है तो अंतर्मन की सभी नकारात्मकताएं समाप्त हो जाती हैं, जैसे प्रकाश अंधकार को स्वत: ही दूर कर देता है। ईश्वर शाश्वत, सर्वव्यापी है और इस सर्वव्यापी का दिव्य प्रकाश सदैव प्रकाशित रहता है। इस दिव्य प्रकाश से जुड़े संत किसी भी सांसारिक प्रभाव से प्रभावित नहीं होते। संत जीवन की हर परिस्थिति में समचित रहते हैं।
सतगुरु माताजी ने कहा कि ईश्वर सदैव हमारे साथ है और इस ईश्वर का ज्ञान किसी भी समय आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। सर्वशक्तिमान के साथ हमारा रिश्ता आत्मीय है और इस से जुड़े रहकर हम जीवन की आनंदमय स्थिति का अनुभव करते हैं।
सतगुरु माता जी के वचनों से पूर्व निरंकारी राजपिता रमित जी ने भी संबोधित किया। उन्होंने एक अच्छे कार्य और मानवतावादी कार्य के बीच अंतर पर विस्तार से अपने विचार सांझा करते हुए कहा कि एक अच्छा कार्य नैतिक मूल्यों, सामाजिक सिद्धांतों या दबाव, अपराधबोध या डर जैसे विभिन्न कारकों के कारण कर्तापन की भावना के साथ किया जाता है। जबकि मानवीय कार्य ईश्वर के प्रति समर्पण और किसी भी कर्तापन से रहित हैं। एक सच्चा भक्त ईश्वर ज्ञान प्राप्त करके स्वयं को उसकी वास्तविक छवि में देखता है और सतगुरु के चरणों में समर्पित होकर मानवतावादी कार्य करता है। यही संदेश आज निरंकारी मिशन पूरी मानवता तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने हमारे सभी रिश्तों में प्यार की आवश्यकता पर जोर दिया और प्यार फैलाने के लिए, हमें प्यार बनने के लिए प्रेरित किया।
गुरुग्राम की संयोजक बहन निर्मल मनचंदा ने सतगुरु माता जी, निरंकारी राजपिता जी और दूर-दूराज से आए प्रभु प्रेमी सज्जनों, संतों भक्तों को धन्यवाद अर्पित किया। उन्होने सतगुरु के प्यार, ब्रह्मज्ञान, साधसंगत व संतों की संभाल और आशीर्वाद के लिए शुक्राना किया। आज के सत्संग कार्यक्रम में गुरुग्राम, दिल्ली एनसीआर और आसपास से बड़ी संख्या में संतो भक्तों ने भाग लिया। इस सत्संग में ईश्वर ज्ञान के महत्व और इस परिवर्तनकारी समर्पित यात्रा से जीवन में आनंदित होने पर भजन, वक्तव्य और कविता के रूप में भाव व्यक्त किए गए।