फैसलाः दिल्ली सरकार की सलाह पर काम करेंगे LG, महाराष्ट्र में शिंदे बने रहेंगे मुख्यमंत्री
NEW DELHI, 11 MAY: दिल्ली व महाराष्ट्र के साथ ही देशभर की निगाहें आज सुबह करीब 11 बजे से दोपहर लगभग 12 बजे तक सुप्रीम कोर्ट पर टिकी रहीं, क्योंकि इस एक घंटे में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और महाराष्ट्र की सरकारों को लेकर अहम फैसले सुनाए। इस दौरान जहां दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को बहुत बड़ी राहत मिली, वहीं महाराष्ट्र की भाजपा-शिंदे शिवसेना सरकार को भी चैन की सांस मिल गई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों में जो टिप्पणियां कीं, उन्होंने दिल्ली के मामले में केंद्र सरकार व महाराष्ट्र के मामले में तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर सवाल खड़े कर दिए। सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों का लव्वोलुबाव यह है कि दिल्ली विधानसभा के अधिकार क्षेत्र के मामलो में अब दिल्ली के उप-राज्यपाल का दखल बंद हो जाएगा तथा महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
पहले बात करते हैं दिल्ली सरकार के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की। केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर लंबे समय से चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने आज अपना फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली संविधान पीठ ने कहा कि यह सर्वसम्मति का फैसला है कि जमीन, पुलिस और कानून-व्यवस्था को छोड़कर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की बाकी प्रशासनिक सेवाओं पर दिल्ली सरकार का ही नियंत्रण है। उपराज्यपाल इन तीन मुद्दों को छोड़कर दिल्ली सरकार के बाकी फैसले मानने के लिए बाध्य हैं।
संविधान पीठ ने 2019 के जस्टिस अशोक भूषण के फैसले से असहमति जताई, जिसमें कहा गया था कि तमाम सेवाएं दिल्ली सरकार के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं। सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के मुताबिक महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों (IAS) पर भी दिल्ली सरकार का नियंत्रण रहेगा, भले ही वे उसकी तरफ से नियुक्त न किए गए हों। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को अधिकारियों को नियंत्रित करने का अधिकार नहीं दिया गया तो जवाबदेही तय करने के सिद्धांत का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर अधिकारियों ने मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर दिया या उन्होंने मंत्रियों के निर्देश नहीं माने तो सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत पर असर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि लोकतांत्रित रूप से निर्वाचित सरकार को अधिकारियों को नियंत्रित करने की इजाजत नहीं दी गई तो विधायिका और जनता के प्रति उस सरकार की जवाबदेही कमजोर हो जाएगी। दिल्ली का केंद्र शासित क्षेत्र अन्य केंद्र शासित प्रदेशों जैसा नहीं है। यह अपने आप में अलग है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा तय प्रशासनिक भूमिका के तहत आने वाले अधिकारों का उप-राज्यपाल इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि विधायिका के दायरे के बाहर आने वाले मुद्दों को वे कार्यकारी रूप से चला सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इसके ये मायने नहीं हैं कि उप-राज्यपाल का पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पर प्रशासनिक नियंत्रण है। अगर पूरा प्रशासन उन्हें दे दिया गया तो दिल्ली के अंदर पृथक निर्वाचित व्यवस्था के कोई मायने नहीं रह जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर इसे जनतंत्र की जीत बताया है।
अब बात महाराष्ट्र सरकार पर फैसले की। महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मामला सात जजों की पीठ को सौंपने का फैसला किया है। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कई अहम टिप्पणियां भी कीं। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल का निर्णय भारत के संविधान के अनुसार नहीं था। पूरे घटनाक्रम को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराने के लिए कोई पुख्ता आधार नहीं था। राज्यपाल फ्लोर टेस्ट को किसी पार्टी के आंतरिक विवाद को सुलझाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास ऐसा कोई संचार नहीं था, जिससे यह संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते थे। राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि सदन के स्पीकर द्वारा शिंदे गुट की ओर से प्रस्तावित स्पीकर गोगावले को चीफ व्हिप नियुक्त करना अवैध फैसला था। स्पीकर को सिर्फ राजनीतिक दल की ओर से नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए थी।
बता दें कि चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ में जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे। इस संविधान पीठ ने महाराष्ट्र के उस राजनीतिक संकट से जुड़ी याचिकाओं पर फैसला दिया है, जिसकी वजह से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली तत्कालीन महा विकास आघाड़ी (एमवीए) गठबंधन सरकार गिर गई थी।
संविधान पीठ ने 16 मार्च-2023 को संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में अंतिम सुनवाई 21 फरवरी को हुई थी और नौ दिनों तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के अंतिम दिन आश्चर्य व्यक्त किया था कि वह उद्धव ठाकरे की सरकार को कैसे बहाल कर सकती है, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सदन में बहुमत परीक्षण का सामना करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया। ठाकरे गुट ने सुनवाई के दौरान न्यायालय से आग्रह किया था कि वह 2016 के अपने उसी फैसले की तरह उनकी सरकार बहाल कर दे, जैसे उसने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नबाम तुकी की सरकार बहाल की थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के 16 बागी विधायकों पर फैसला सुनाने से इंकार करते हुए यह अधिकार विधानसभा स्पीकर पर छो़ड़ दिया है।
ठाकरे गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और देवदत्त कामत के साथ वकील अमित आनंद तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पक्ष रखा था। दूसरी तरफ, एकनाथ शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल, हरीश साल्वे, महेश जेठमलानी और अधिवक्ता अभिकल्प प्रताप सिंह ने पक्ष रखा था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता राज्य के राज्यपाल कार्यालय की ओर से पेश हुए थे।