NEW DELHI, 22 JUNE: देश में राष्ट्रपति चुनाव के ऐलान के बाद से उम्मीदवारों को लेकर कयास लगाए जा रहे थे। ऐसे में पक्ष और विपक्ष दोनों ने ही राष्ट्रपति चुनाव कैंडिडेट के नामों का घोषणा कर दी है। एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा को संयुक्त उम्मीदवार घोषित किया गया है। दिलचस्प बात ये है कि दोनों ही उम्मीदवारों का बीजेपी से कनेक्शन रहा है। आइए जानते हैं कौन हैं द्रौपदी मुर्मू और यशवंत सिन्हा साथ ही इनके अब तक के योगदान के बारे में…
निर्वाचित होने पर, स्वतंत्रता के बाद पैदा हुई प्रथम राष्ट्रपति
अगर द्रौपदी मुर्मू निर्वाचित होती हैं, तो वह देश की स्वतंत्रता के बाद जन्म लेने वाली पहली राष्ट्रपति होंगी। द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा में हुआ। अभी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को आजादी मिलने के बाद पैदा हुए पहले प्रधानमंत्री हैं। इसके अलावा यदि वे चुनाव जीत जाती हैं तो देश में पहली बार किसी आदिवासी समुदाय की महिला राष्ट्रपति बनेंगी।
राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का शुरुआती सफर
द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के पूर्व मंत्री दिवंगत बिरंची नारायण टुडू की बेटी हैं। अपने पति श्यामाचरण मुर्मू और दो बेटों को खोने के बाद, मुर्मू ने अपने निजी जीवन में बहुत त्रासदी देखी है।ओडिशा के मयूरभंज जिले के रहने वाले, मुर्मू ने राज्य की राजनीति में प्रवेश करने से पहले एक शिक्षक के रूप में शुरुआत की। विधायक बनने से पहले, मुर्मू ने 1997 में चुनाव जीतने के बाद रायरंगपुर नगर पंचायत में पार्षद और बीजेपी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
राज्यपाल के रूप में सेवा
द्रौपदी मुर्मू वर्ष 2000 में गठन के बाद से पांच साल का कार्यकाल (2015-2021) पूरा करने वाली झारखंड की पहली राज्यपाल हैं। वह छह साल एक माह 18 दिनों का कार्यकाल रहा। इस दौरान द्रौपदी मुर्मू विवादों से दूर रही। द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी राज्यपाल बनी थीं।राजनीति में मुर्मू का करियर 2 दशकों से अधिक का है।
कुलाधिपति द्रौपदी मुमू ने अपने कार्यकाल में झारखंड के विश्वविद्यालयों के लिए चांसलर पोर्टल शुरू कराया। इसके जरिये सभी विश्वविद्यालयों के कॉलेजों के लिए साथ छात्रों का ऑनलाइन नामांकन शुरू कराया।
द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक सफर
द्रौपदी मुर्मू ओडिशा में बीजेपी और बीजू जनता दल गठबंधन सरकार के दौरान 6 मार्च 2000 से 6 अगस्त 2002 तक वाणिज्य और परिवहन की और 6 अगस्त 2002 से 16 मई 2004 तक मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री थीं। वह मयूरभंज (2000 और 2009) के रायरंगपुर से भाजपा के टिकट पर दो बार विधायक रह चुकी हैं। द्रौपदी मुर्मू को ओडिशा विधानसभा द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ठ विधायक के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी के बारे में रोचक तथ्य
एक बार निर्वाचित होने के बाद, वह भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति और दूसरी बार महिला राष्ट्रपति होंगी। वह ओडिशा से पहली राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं और निर्वाचित होने के बाद ओडिशा राज्य से देश की पहली राष्ट्रपति बनेंगी।
द्रौपदी मुर्मू ने उम्मीदवार बनाए जाने पर क्या कहा
वहीं राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाने पर द्रौपदी मुर्मू ने आश्चर्य व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि टीवी पर नाम सुनकर उन्हें आश्चर्य के साथ खुशी भी हुई। उन्होंने कहा कि एक जनजातीय महिला को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित कर बीजेपी ने अपनी नीति स्पष्ट की है। बीजेपी सबका साथ, सबका विकास की नीति में विश्वास करती है। उन्होंने कहा कि 2021 के बाद से वह राजनीतिक कार्यक्रमों से दूर हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार होने के कारण सभी के सहयोग की कामना करती हूं और उन्हें विश्वास है कि उन्हें आवश्यक सहयोग प्राप्त होगा।
विपक्ष उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का शुरुआती सफर
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति चुनाव के लिए संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार नामित किया गया है।
यशवंत सिन्हा का जन्म 6 नवम्बर, 1937 को पटना में हुआ था। यशवंत सिन्हा ने पटना विश्वविद्यालय में ही छात्रों को पढ़ाया। वर्ष 1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए और अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए सेवा में 24 से अधिक वर्ष बिताए। इस दौरान उन्होंने चार वर्षों तक सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट और जिला मजिस्ट्रेट के रूप में भी सेवा दी। यशवंत सिन्हा ने 1984 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दिया।
यशवंत सिन्हा का राजनीतिक सफर
यशवंत सिन्हा जनता पार्टी के सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति से जुड़ गए और वर्ष 1988 में उन्हें राज्य सभा का सदस्य चुना गया। 1990-91 में वे चंद्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री रहे। मार्च 1998 में अटल सरकार में उनको वित्त मंत्री और विदेश मंत्री नियुक्त किया गया। 22 मई 2004 तक संसदीय चुनावों के बाद नई सरकार के गठन तक वे विदेश मंत्री रहे।
फरवरी के आखिरी कार्यदिवस और शाम पांच बजे बजट पेश करने की परंपरा को 1999 में पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने समय बदलकर 11 बजे कर दिया था। उन्हें पेट्रोलियम उपकर के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के वित्त पोषण को बढ़ावा देने का श्रेय भी दिया जाता है। उन्होंने पूरे भारत में राजमार्गों के निर्माण को आगे बढ़ाने और महत्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना को शुरू करने में मदद की।
करीब तीन दशक तक भाजपा से जुड़े रहने के बाद 2018 में बीजेपी पार्टी छोड़ दी। पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा मार्च 2021 में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए। हालाकि राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने से पहले सिन्हा ने तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था।
उम्मीदवार बनाए जाने पर क्या कहा
यशवंत सिन्हा ने ट्वीट कर कहा, “अब समय आ गया है जब एक बड़े राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए मुझे पार्टी से हटकर अधिक विपक्षी एकता के लिए काम करना होगा। मुझे यकीन है कि वह इस कदम को स्वीकार करती है।”
विपक्ष उम्मीदवार से जुड़े रोचक तथ्य
–यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा भी सत्तारूढ़ दल के सदस्य हैं। जयंत सिन्हा ने 2014-2019 तक पीएम मोदी की पहली सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया।
–2015 में, वरिष्ठ राजनेता को फ्रांस सरकार का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, ऑफिसियर डे ला लीजन ‘होनूर’ मिला।
–राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार भारत के 15वें राष्ट्रपति के लिए विपक्ष की पसंदीदा पसंद थे। हालांकि, उन्होंने विनम्रता से इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
–जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और बंगाल के पूर्व राज्यपाल, महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी ने भी विपक्ष के उम्मीदवार नहीं होने का फैसला किया।