CHANDIGARH, 22 MARCH: पंजाब की भगवंत मान सरकार द्वारा प्रदेश के ग्रुप सी और ग्रुप डी वर्ग के 35 हजार कर्मचारियों को पक्का करने के आज किए गए ऐलान को अमली जामा पहनाने में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच द्वारा 16 वर्ष पूर्व 10 अप्रैल 2006 को दिया गया एक निर्णय आड़े आ सकता है।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि आठ वर्ष पूर्व हरियाणा की तत्कालीन भूपेंद्र हुड्डा सरकार ने भी जून-2014 और जुलाई-2014 में प्रदेश में कच्चे और अनुबंध आधार पर विभिन्न विभागों में कार्यरत ग्रुप बी, सी और डी वर्ग के संकड़ों कर्मचारियों को सरकारी सेवा में पक्का करने के लिए विभिन्न नीतियां बनाई थीं परंतु 31 मई 2018 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल शामिल थे, ने योगेश त्यागी बनाम हरियाणा सरकार नामक केस के फैसले में उपरोक्त नियमितीकरण नीतियों के अंतर्गत पक्के किए गए सरकारी कर्मचारियों को गहरा झटका देते हुए इस आधार पर उन नीतियों को रद्द कर दिया था कि सुप्रीम कोर्ट की अप्रैल-2006 के एक संवैधानिक बेंच के निर्णय (सचिव, कर्नाटक सरकार बनाम उमा देवी) के अनुसार कच्चे कर्मचारियों को इस प्रकार पिछले दरवाज़ से नियमित करना सर्वथा असंवैधानिक है एवं देश में कोई भी सरकार इस तरह कच्चे कर्मचारियों का सरकारी सेवा में नियमितीकरण नहीं कर सकती। हालांकि हाईकोर्ट ने हरियाणा के ऐसे कर्मचारियों को छह माह तक सरकारी सेवा में बने रहने के लिए अनुमति दे दी थी एवं हरियाणा सरकार को निर्देश दिया था कि इन पदों पर नियमित भर्ती प्रारंभ करे। हालांकि उपरोक्त नीतियों के रद्द होने के फलस्वरूप सरकारी नौकरी से हटाए जा रहे कर्मचारियों को चयन प्रक्रिया में कुछ हद तक वरीयता प्रदान की जा सकती है।
बहरहाल, इसके बाद हाईकोर्ट के उपरोक्त निर्णय के फलस्वरूप हरियाणा के प्रभावित सरकारी कर्मचारियों एवं प्रदेश सरकार द्वारा उपरोक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी एवं यह मामला करीब चार वर्ष से सुप्रीम कोर्ट में है। हालांकि मौजूदा राज्य सरकार इस विषय पर हर पहलू से विचार-विमर्श कर रही है, ताकि हाईकोर्ट के उपरोक्त फैसले की भी अवमानना न हो और कर्मचारियों से भी सहानुभूति रखी जा सके।