आज की कविताः मैंने पूछा जिंदगी क्या है ?

मैंने पूछा जिंदगी क्या है ?
उसने कहा,
ज़िंदगी,
मेरी हमदम की जुल्फों में छुपी,
अब्र की बूंद है जो,
झटकने पे मेरे मन को,
भिगा जाती है।
मेरी सोई हुई धड़कन को,
जगा जाती है।

मैंने पूछा ज़िंदगी क्या है ?
उसने कहा,
ज़िंदगी,
मेरी मां का आंचल है,
जिसमें छुपकर मैं ,
चैन से सो जाती हूं,
समेट लेती है वो खुद में,
मेरी हर तकलीफ,
पौंछती है उसी आंचल से आंसू,
उसी आंचल से, मेरा चेहरा,
सहलाती है।

मैंने पूछा ज़िंदगी से तुम क्या हो ?
उसने कहा,
मैं हर एक की परछाई हूं।
सुबह,
परदे हटाती हुई धूप हूं,
और छांव बन,
साथ निभाती हुई तन्हाई हूं।
सुकून की मुस्कान हूं,
जो चाय की प्याली बन,
तेरी दिनभर की थकावट,
मिटाने आई हूं।

मैं जागती हूं सूरज से पहले,
और सब के बाद सोती हूं।
मैं हर रूप में तेरे संग हूं,
तू हंसे तो, हंस देती हूं मैं,
और तेरी तकलीफ में,
बेबस हो रो देती हूं ।
मैं तो बस तेरी परछाई  हूं,
धर के सौ रूप,
तेरा साथ देती आई हूं।

मैं वो ममता हूं,
जिसने तुझे जन्म दिया।
मैं वो अनुजा हूं,
जो कलाई पे बांध धागा,
तेरे लिए दुआ करती आई हूं।
मैं वह प्रेयसी हूं,
जिसने संगिनी बन,
तेरे जीवन को
इक नया आयाम दिया।
मैं वो एहसास हूं,
पिता का,
जिसने तुझे नया नाम दिया।

मैं जिंदगी हूं,
बस इतनी है पहचान  मेरी,
तुझसे मैं हूं और मुझ से तू,
थाम ले हाथ,
चल सफर तय करें,
मैं जरूरत हूं तेरी,
और मेरी मुहब्बत तू।

  • स्मिता सेठी, जिला समाज कल्याण अधिकारी, जम्मू।

error: Content can\\\'t be selected!!