MERRUT: ”मेरठ” केवल एक शहर का नाम नहीं है। दरअसल, यह भारत के इतिहास में हमारी संस्कृति, हमारे सामर्थ्य का भी महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। रामायण-महाभारत काल से मेरठ ने देश की आस्था को ऊर्जावान किया है। मेरठ और आसपास के इस क्षेत्र ने स्वतंत्र भारत को भी नई दिशा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। राष्ट्र रक्षा के लिए सीमा पर बलिदान हों या फिर खेल के मैदान में देश के लिए सम्मान, राष्ट्रभक्ति की अलख को इस क्षेत्र ने सदा-सर्वदा प्रज्जवलित रखा है। यही मेरठ अब उत्तर भारत की नई खेल राजधानी बनने को तैयार है। इस दिशा में न केवल केंद्र सरकार और राज्य सरकार का बल्कि इस शहर के लोगों और कारीगरों का भी योगदान है जो यहा खेल जगत से जुड़े सामान का निर्माण करते हैं… खेल जगत में मेरठ का बड़ा नाम खेल जगत में मेरठ का बड़ा नाम है। दरअसल, मेरठ हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यान चंद की भी कर्मस्थली रहा है। कुछ माह पहले ही केंद्र सरकार ने देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार का नाम मेजर ध्यान चंद के नाम पर कर दिया है। यह पल न केवल इस क्षेत्र के लिए गौरवपूर्ण बना बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए सम्मानीय साबित हुआ। बता दें, मेरठ में मेजर ध्यान चंद को समर्पित एक स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी भी तैयार की गई है जो युवाओं को नई दिशा देने में मदद कर रही है। और भी ऐसे अनेक से कारण है जिसके चलते आज मेरठ का खेल जगत में डंका बजता है। यह भी कहा जाता है कि अब वह दिन दूर नहीं जब मेरठ उत्तर भारत की नई खेल राजधानी बनेगा। इस क्षेत्र में किए ये तमाम बदलाव और विकास कार्य यही कहानी बयान कर रहे हैं।
100 से अधिक देशों में स्पोर्ट्स का सामान होता है निर्यात
खेल सामग्री विशेष रूप से क्रिकेट और उसके उपकरण यहां से दुनियाभर में निर्यात किए जाते हैं। जी हां, मेरठ आज ऐसी पॉपुलर सिटी आफ स्पोर्ट्स बन गया है कि जहां न सिर्फ क्रिकेट, फुटबॉल, टेनिस, बास्केटबॉल, बॉक्सिंग-फेंसिंग, स्पोर्ट्स वियर इत्यादि खेल से जुड़ा सामान मिलता है बल्कि इन्हें यहां से 100 से भी अधिक देशों में निर्यात किया जाता है। इससे भारत की करोड़ों रुपए की कमाई होती है। खेल से जुड़ी सर्विस और सामान का वैश्विक बाजार लाखों करोड़ रुपए का है।
मेरठ का लोकल प्रोडक्ट बना ग्लोबल
इसी के बलबूते आज मेरठ ने अपने लोकल प्रोडक्ट को ग्लोबल बना दिया है। मेरठ में तैयार स्पोर्ट्स प्रोडक्ट की डिमांड ऑल ओवर वर्ल्ड होने लगी है। अब इस स्पोर्ट्स सिटी से यह बात तो जरूर सीखने को मिली है कि कैसे एक लोकल प्रोडक्ट को ग्लोबल बनाना है। खास बात यह है कि इस बार बजट में केंद्र सरकार द्वारा एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में भागीदारी की घोषणा ने उद्यमियों के चेहरे पर चमक बढ़ा दी है। दरअसल, उनका मानना है कि केंद्र सरकार की भागीदारी से योजना में बजट आएगा तो प्रदेश सरकार के बजट के साथ दोनों सरकारों का बजट बढ़ेगा जो उद्योग के विकास पर खर्च होगा। इससे उद्योग और तेज रफ्तार पकड़ेगा। मेरठ के स्पोर्ट्स गुड्स व्यापारी और कारोबारी इस बात को लेकर बेहद उत्साहित हैं।
आत्मनिर्भर भारत का सपना कर रहा साकार
पीएम मोदी के आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार करने में मेरठ भी अपनी अहम भूमिक अदा कर रहा है। देश में ही देश का ही प्रोडक्ट तैयार कर उसे विशेष पहचान दिलाने से लेकर उस उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने का कार्य आज मेरठ बखूबी कर रहा है। जी हां, मेरठ ने अपने ब्रांड के बल्ले बनाकर प्रधानमंत्री मोदी का आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार किया है।
मेरठ की तर्ज पर देशभर में ऐसे स्पोर्ट्स कलस्टर किए जा रहे विकसित
मेरठ की तर्ज पर आज देशभर में ऐसे स्पोर्ट्स कलस्टर विकसित किए जा रहे हैं। मकसद सिर्फ इतना है कि देश स्पोर्ट्स के सामान और उपकरणों की मैन्यूफैक्चरिंग में भी आत्मनिर्भर बन सके। वहीं स्टार्ट-अप्स से लेकर स्पोर्ट्स तक, हर तरफ भारत के युवा ही छाए हुए हैं।
मेरठ में स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटीज की तैयार
700 करोड़ रुपए की लागत से बनाई गई ये आधुनिक यूनिवर्सिटी दुनिया की श्रेष्ठ स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटीज में से एक है। यहां युवाओं को खेलों से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय सुविधाएं तो मिलेंगी ही साथ ही ये एक करियर के रूप में स्पोर्ट्स को अपनाने के लिए जरूरी स्किल्स का निर्माण करेगी। यहां से हर साल 1000 से अधिक युवा-युवती बेहतरीन खिलाड़ी बनकर निकलेंगे।
गौरतलब हो, पहले के समय में खेल की कोई इज्जत ही नहीं मानी जाती थी। लेकिन अब समय बदल गया है। खेलों के प्रति लोगों की सोच और समझ का दायरा भी विकसित हुआ है। इसी दिशा में केंद्र सरकार अब गांव-गांव में आधुनिक स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कर रही है, उसी का परिणाम है कि जहां पहले बेहतर स्टेडियम, सिर्फ बड़े शहरों में देखे जाते थे, आज गांव के पास ही खिलाड़ियों को ये सभी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। आज देश में स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटीज इतनी जरूरी हैं कि ये खेल की संस्कृति के फलने-फूलने के लिए नर्सरी की तरह काम करती हैं। इसी तरज पर बीते 7 साल में देशभर में स्पोर्ट्स एजुकेशन और स्किल्स से जुड़े अनेकों संस्थानों को आधुनिक बनाया गया है।