घोर निराशा में डूबी चंडीगढ़ कांग्रेस के मौजूदा हालात ने बेटे मनीष बंसल को पंजाब की सियासत में शिफ्ट करने पर किया मजबूर
कांग्रेस ने मनीष बंसल को बरनाला विधानसभा सीट से घोषित किया उम्मीदवार
चंडीगढ़ लोकसभा सीट की उम्मीदवारी पर नजर लगाए बैठे कांग्रेस के अन्य नेता 2024 के लिए शहर में हुए सक्रिय
CHANDIGARH: पिछले महीने नगर निगम चुनाव से पंजाब की राजनीति में हलचल मचाने वाली चंडीगढ़ की सियासत में अब पंजाब विधानसभा चुनाव के आज के एक बड़े घटनाक्रम ने गर्मी पैदा कर दी है। कांग्रेस ने आज पूर्व केंद्रीय मंत्री और चंडीगढ़ से लगातार 3 बार सांसद चुने जाते रहे पवन कुमार बंसल के पुत्र मनीष बंसल को पंजाब विधानसभा की बरनाला सीट से चुनाव मैदान में उतार दिया है। इसी के साथ बंसल परिवार की नई पीढ़ी का राजनीति में औपचारिक पदार्पण तो हो ही गया है, बल्कि अब माना जा रहा है कि पवन बंसल ने चंडीगढ़ लोकसभा सीट की दावेदारी भी छोड़ दी है। ऐसे में अब 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के भीतर चंडीगढ़ सीट से उम्मीदवारी को लेकर लंबे समय बाद बड़ा घमासान देखा जा सकता है।
लगातार 15 साल चंडीगढ़ से सांसद रहे पवन बंसल
करीब 23 साल पहले चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर उम्मीदवारी के लिए पवन कुमार बंसल का सामना तत्कालीन कद्दावर कांग्रेसी नेता विनोद शर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी से होता रहा लेकिन पवन कुमार बंसल इन सब पर भारी पड़ते रहे। इसके बाद विनोद शर्मा हरियाणा तो मनीष तिवारी पंजाब की राजनीति में पलायन कर गए तो पवन कुमार बंसल चंडीगढ़ की कांग्रेसी सियासत पर एक छत्र राज करते रहे। इसी के साथ दिल्ली में भी बंसल का कद बढ़ता रहा तो वह चंडीगढ़ की कांग्रेसी राजनीति में निर्विवादित रूप से सर्वमान्य नेता बन गए। स्थिति यह हो गई कि चंडीगढ़ में पवन बंसल का मतलब कांग्रेस और कांग्रेस का मतलब पवन बंसल हो गए लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर आम आदमी पार्टी की एंट्री से बंसल का विजय रथ रुक गया। वह 15 साल के सांसद कार्यकाल के बाद पहली बार चुनाव हार गए। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी पवन बंसल को हार का सामना करना पड़ा।
आगे चुनाव न लड़ने का ऐलान भी कर चुके थे बंसल
लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार हार से निराश पवन बंसल ने आगे चुनाव न लड़ने का भी ऐलान कर दिया था लेकिन बाद के दिनों में बंसल की सियासी गतिविधियों से दिखने लगा कि बंसल ने आगे चुनाव न लड़ने की घोषणा भावना में बहकर कर दी थी। असल में 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पवन बंसल ही यहां कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे लेकिन पिछले साल कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने पार्टी के शीर्ष नेता मोतीलाल वोरा के निधन के बाद पवन बंसल को राष्ट्रीय महासचिव (प्रशासन) जैसे बड़े अहम पद की जिम्मेदारी दे दी और फिर गांधी परिवार के बेहद नजदीकी अहमद पटेल के निधन के बाद पवन बंसल को ही राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष भी बना दिया तो मौजूदा दौर में बंसल गांधी परिवार के सबसे विश्वासपात्र नेता के रूप में तो उभरे ही, उसके साथ जिस तरह उनकी दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में व्यस्तता बढ़ गई तो यह तय माना जाने लगा कि पवन कुमार बंसल अब चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए समय नहीं निकाल पाएंगे, बल्कि पार्टी उन्हें राज्यसभा सांसद बना सकती है।
नगर निगम चुनाव में बिखर गई कांग्रेस, छाबड़ा व बबला जैसे कद्दावर छोड़ गए साथ
इस बीच, पवन बंसल ने अपने पुत्र मनीष बंसल को चंडीगढ़ की कांग्रेस राजनीति में सक्रिय कर दिया तो यह माना जाने लगा कि अब मनीष बंसल ही 2024 में कांग्रेस से चंडीगढ़ लोकसभा पर चुनाव लड़ेंगे। इस बार के नगर निगम चुनाव में पवन बंसल से ज्यादा मनीष बंसल ही सक्रिय दिखे लेकिन नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी ने जिस तरह चौकाने वाला प्रदर्शन किया, उसको देखते हुए चंडीगढ़ में कांग्रेस निराशा में बुरी तरह डूब गई है। पार्टी बिखरी-बिखरी सी दिख रही है। पूर्व चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा समेत कई कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ता आम आदमी पार्टी में चले गए तो शहर में कद्दावर कांग्रेसी नेता रहे देविंदर सिंह बबला, उनकी पत्नी एवं पार्षद हरप्रीत कौर, इंटक के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुलबीर सिंह जैसे नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया। निगम चुनाव में हार के बाद कई तरह के आरोपों का सामना कर रहे चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष सुभाष चावला भी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से आग्रह कर चुके हैं कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से कार्यमुक्त कर दिया जाए। चंडीगढ़ में कांग्रेस के हालात ऐसे बन गए हैं कि यहां पार्टी में नेताओं की पहली पंक्ति लगभग खत्म होने के कगार पर है। माना जा रहा है कि इस स्थिति को देखते हुए ही पवन कुमार बंसल ने अपने बेटे मनीष बंसल का राजनीति में औपचारिक पदार्पण 2024 के लोकसभा चुनाव में चंडीगढ़ सीट से कराने की बजाय अब पंजाब विधानसभा चुनाव में बरनाला सीट से कराने का फैसला किया। पवन बंसल खुद मूल रूप से पंजाब के ही निवासी हैं। उनका जन्म पंजाब के सुनाम में हुआ था।
मनीष तिवारी व राजेन्द्र राणा की चंडीगढ़ पर नजर
पवन बंसल के इस बड़े निर्णय के साथ यह भी लगभग तय माना जा रहा है कि बंसल ने अब चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर अपने या अपने परिवार के किसी सदस्य के लिए दावेदारी छोड़ दी है। उनकी आयु भी अब 73 वर्ष हो चुकी है और समझा जाता है कि कांग्रेस के दिल्ली मुख्यालय में उनकी जिस तरह की जिम्मेदारी तथा व्यस्तता है, उसके मद्देनजर कांग्रेस नेतृत्व उन्हें आने वाले दिनों में राज्यसभा सांसद बना सकता है। कांग्रेस के भीतर चंडीगढ़ लोकसभा सीट की उम्मीदवारी पर घात लगाए बैठे नेता इसको देखते हुए सक्रिय भी हो गए हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने एक बार फिर यहां अपनी गतिविधियां शुरू कर दी हैं। गत 26 जनवरी को ही तिवारी ने दो जगह कार्यक्रमों में शिरकत कर इसके संकेत भी दे दिए हैं। इन कार्यक्रमों में चंडीगढ़ के कुछ कांग्रेस नेता भी तिवारी के साथ दिखे। दूसरी ओर, हिमाचल के कांग्रेसी विधायक राजेन्द्र राणा भी पिछले कुछ समय से चंडीगढ़ में सक्रिय देखे जा रहे हैं। पार्टी ने इस बार के चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में राजेंद्र राणा को बड़ी जिम्मेदारी दी थी। तब उन्होंने भाजपा के कुछ हिमाचली नेताओं व यहां रह रहे हिमाचल मूल के कई लोगों को कांग्रेस ज्वाइन कराकर यहां हिमाचली लोगों के बीच अपनी पैठ साबित की थी। माना जा रहा है कि इसी साल हिमाचल विधानसभा के चुनाव में यदि राजेन्द्र राणा को उम्मीद के मुताबिक कद नहीं मिला तो वह 2024 में लोकसभा जाने के लिए चंडीगढ़ सीट का रुख कर सकते हैं। इसके अलावा कांग्रेस के अंदर दो साल के अंतराल में चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर उम्मीदवारी के लिए कौन अन्य दावेदार भी खड़े हो सकते हैं, यह तो वक्त बताएगा लेकिन इतना तय है कि 2024 में पवन बंसल की दावेदारी से चंडीगढ़ लोकसभा सीट की उम्मीदवारी खाली हुई तो लम्बे समय बाद यहां कांग्रेस में इस सीट की उम्मीदवारी के लिए बड़ा घमासान देखने को मिलेगा।