चण्डीगढ़ के साइंसदां डॉ. बीपी गौड़ लक्षचंडी महायज्ञ का वैज्ञानिक अध्ययन करने वाले दल का हिस्सा बनेंगे
CHANDIGARH: धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर संस्था ‘मां मोक्ष दायनी गंगाधाम ट्रस्ट’ के तत्वाधान में यज्ञ सम्राट परम आदरणीय श्री हरिओम जी महाराज जी के मार्गदर्शन तथा श्री शंकराचार्य जी, मठाधीशों और महामण्डलेश्वरों के सानिध्य में विश्वस्तरीय व सदी के सबसे विशाल “लक्षचंडी महायज्ञ” का आयोजन 22 अक्टूबर से 01 नवंबर तक तथा दैनिक प्रार्थना 01 सितंबर से 22 अक्टूबर तक थीम पार्क, कुरुक्षेत्र में किया जा रहा है। 22 अक्तूबर से 1 नवंबर तक पूर्ण आहूतियां दी जाएंगी जिसमें देश-प्रदेश के अनेक गणमान्य, राज-नेतागण, धार्मिक व सामाजिक हस्तियां शामिल होंगी।
कार्यक्रम के प्रभारी राघव संजीव घारू ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि द. कोरिया में कार्यरत डॉ. राजेश की अगुआई में पूरे विश्व भर के विज्ञानिकों के साथ-साथ चण्डीगढ़ के विज्ञानिक डॉ. बीपी गौड़ भी यज्ञ का सामाजिक, आर्थिक, मानसिक तौर पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करेंगे। चण्डीगढ़ के निवासी डॉ. बीपी गौड़ ने योग व अध्यात्म के क्षेत्र में शोध किया हुआ है।
राघव संजीव घारू ने बताया कि भारत तथा विश्व में कोरोना जैसी घातक महामारी के निदान के लिए पहली बार श्रीमद्भागवत गीता जी के जन्मस्थल कुरुक्षेत्र, जो कर्म और धर्म के वास्तविक ज्ञान का स्थल भी है, इस बार उक्त संस्था द्वारा आयोजित 501 हवन कुण्ड वाले इस पवित्र एवं ऐतिहासिक लक्षचंडी महायज्ञ का साक्षी बनने जा रहा है। उन्होंने बताया कि महायज्ञ में अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिकों तथा डॉक्टरों के समूह, देश भर के संस्कृति और विज्ञान के क्षेत्र के अनेकों छात्र तथा शोधकर्ता भी अपने शोध हेतु इस महायज्ञ में भागीदारी कर रहे हैं। राघव संजीव घारू ने कहा कि इस महायज्ञ का तथा अंतराष्ट्रीय स्तर पर हमारे सनातन हिन्दू धर्म तथा संस्कृति का गौरव बढ़ेगा। इस महायज्ञ से आज समग्र विश्व मीडिया के माध्यम से वैदिक सनातन धर्म की शक्ति से परिचित होने को आतुर है।
दुर्गा सप्तशती व मार्कण्डेय पुराण पर पीएचडी कर चुके हैं डॉ. राजेश
डॉ. राजेश, जो द. कोरिया में कार्यरत हैं व इस महाआयोजन में वैज्ञानिक अध्ययन करने वाली टीम की अगुआई कर रहें हैं, ने बताया कि वे दुर्गा सप्तशती व मार्कण्डेय पुराण पर पीएचडी कर चुके हैं। उन्होंने जानकारी दी कि दुर्गा सप्तशती के 12वें अध्याय के श्लोक 28 से 30 में महामाई की स्तुति करते हुए सभी देवतागण उन्हें महामारी कह कर भी संबोधित करते हैं। दरअसल इससे पिछले के अध्यायों में महामाई असुरों का संहार करती हैं व समस्त जगत को उनके प्रकोप से मुक्ति दिलाती हैं। तब देवतागण एकत्र होकर उनके धन्यवाद हेतु ये स्तुति करते हैं। डॉ. राजेश कहते हैं कि आज के दौर में यज्ञ पर इस तरह का वैज्ञानिक अध्ययन अति आवश्यक था व उन्हें पूर्ण विश्वास है कि ये मानव जाति के लिए अत्यंत सुखदाई नतीजे देने वाला साबित होगा।
यज्ञ द्वारा उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा हर जगह फैलती है : राघव संजीव घारू
राघव संजीव घारू के मुताबिक सनातन वैदिक ज्ञान का जागृत रूप हवन ना केवल आध्यात्मिक विषय है, अपितु उससे कहीं अधिक आज के इस आधुनिक युग में इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अधिक महत्व भी है। यज्ञ तत्त्वों से उत्पन्न ऊर्जा के सम्पर्क में आते ही वायुमण्डल में फैले अनेकों प्रकार के कीटाणु तथा वायरस जो मानव प्रजाति के लिए भयंकर घातक होते हैं वे सहज ही नष्ट हो जाते हैं। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन में भी दावा किया गया है कि हवन-यज्ञ से निकलने वाली ऊर्जा तथा शुद्ध वायु वातावरण में मौजूद संक्रमण (बैक्टीरिया) को काफी हद तक कम कर देता है, जिससे संक्रामक रोगों के फैलने में भारी कमी आती है। दवाओं के प्रयोग से व्यक्ति में सीमित प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है किंतु यज्ञ द्वारा उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा हर जगह फैलती है, जिससे न केवल मनुष्य बल्कि सभी जीव जंतुओं, पेड़-पौधों तथा वायुमंडल को भी सुरक्षित किया जा सकता हैं। इसलिए अकाल-महामारी से बचने के लिए यज्ञ ही एकमात्र सार्थक उपाय है। उल्लेखनीय है कि हमारे सनातन ऋषियों ने आज उपलब्ध अनेकों साहित्य के माध्यम से यज्ञ के महत्व को बताया, वहीं दूसरी ओर कई वैज्ञानिकों और विद्वानों ने यज्ञ पर शोध किया है तथा इसके महत्व के बारे में कई प्रयोग करके दवाइयाँ बनाई हैं, जिसमें रसायन विज्ञान के फ्रांसीसी वैज्ञानिक प्रो. मैक्स मुलर, डॉ. त्रिले, प्रो. टिलवर्ट, डॉ. टैटलिट, फ्रेंच डॉ. हेफ़किन (चेचक के टीके के आविष्कारक), जर्मन डॉ. माथियास फ़ारिंगर, डॉ. हिरोशी मोटोयामा, श्रीमती मार्गरेट मोरी आदि प्रमुख हैं।