CHANDIGARH: भारत सरकार ने हाल ही में पीएलआई स्कीम को मंजूरी दी है जिसके अनुसार सरकार 120 करोड़ रूपए ड्रोन व उसके पुर्जे बनाने के लिए निवेश करेगी। आज चंडीगढ़ प्रेस क्लब में यह जानकारी देते हुए चंडीगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ ड्रोन्स के फाउंडर व सीईओ सन्नी कुमार ने बताया कि भारत सरकार द्वारा नई नीति से ड्रोन इंडस्ट्री को बढ़ावा मिलने के साथ ही रोज़गार के नए अवसर भी उत्पन्न होंगे। सन्नी ने बताया कि इससे पहले ड्रोन के पुर्जे विदेशों से लाए जाते थे लेकिन अब से यह पुर्जे भारत में ही निर्मित किए जाएंगे।
इस मौके पर सन्नी के साथ पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज के एरोनॉटिकल विभाग के हेड डॉ टी के जिंदल, चंडीगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ़ ड्रोन्स से मनीष पंडित और उसम सिद्दीकी और आईओटीज़ के सीईओ शिवांश सेठी मौजूद रहे। पीएलआई स्कीम को मंजूरी देने पर सन्नी कुमार ने ट्वीट करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य का धन्यवाद किया है।सन्नी कुमार ने आगे बताया कि पीआईएल स्कीम को मंजूरी मिलने के बाद इसके तहत चंडीगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ़ ड्रोन्स ने ड्रोन व उसके पुर्जों के निर्माण के लिए एक मैनुफैक्चरिंग यूनिट शुरू करने का फैंसला लिया है। इस यूनिट से चंडीगढ़ व आस-पास के लोगों को रोज़गार तो मिलेगा ही लेकिन साथ ही इंजीनियरिंग छात्रों को आगे एक प्लेटफॉर्म भी मिलेगा।
डॉ टी के जिंदल ने बताया कि शिक्षा के तौर पर देखें तो आज के छात्रों को ड्रोन जरूर सीखना चाहिए। देश की सुरक्षा के लिए ड्रोन बहुत कारगर हैं। जिस प्रकार दुनिया में ड्रोन से हमले बढ़ गए हैं, उसको ध्यान में रखते हुए ड्रोन की जानकारी होना व ड्रोन क्षेत्र में ज़्यादा से ज़्यादा तकनीकी छात्रों को जरूर आना चाहिए। जो भी छात्र ड्रोन के क्षेत्र में आना चाहते हैं वे चंडीगढ़ ड्रोन इंस्टीट्यूट से संपर्क कर सकते हैं। हमारी तरफ से रिसर्च एंड डेवलपमेंट में पूरी मदद की जाएगी।
सन्नी कुमार ने बताया कि उनका इंस्टीट्यूट कस्टमाइज ड्रोन्स का निर्माण करता है और वे इंडियन आर्मी सहित हरियाणा व चंडीगढ़ पुलिस के साथ काम कर चुके हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष कोविड के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान चंडीगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ ड्रोन्स ने चंडीगढ़ पुलिस को फ्री में ड्रोन्स दिए थे ताकि ड्रोन के जरिए भीड़भाड़ वाले इलाकों में निगरानी रखी जा सके। सन्नी ने कहा कि वे ड्रोन क्षेत्र में काम करने की इच्छा रखने वाले युवाओं को प्लेटफॉर्म देना चाहते हैं जिसके लिए ऐसी इच्छा रखने वाले बच्चे उनके इंस्टीट्यूट से संपर्क कर सकते हैं।