PANCHKULA: उमंग अभिव्यक्ति मंच पंचकूला ने सावन की रिमझिम फुहार पर एक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें चंडीगढ़ ट्राइसिटी की अनेक कवियत्रियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। मंच की फाउंडर श्रीमती नीलम त्रिखा ने बताया कि वर्षा ऋतु के आगमन पर सभी ने बहुत ही सुंदर भाव अपनी कविता के माध्यम से व्यक्त किए। साथ ही भगवान शिव के प्रिय सावन मास के महत्व पर भी चर्चा की गई। सभी ने भगवान भोलेनाथ से कोरोना से छुटकारा दिलाने की गुहार लगाई।
इस कार्यक्रम में नीलम त्रिखा, राशि श्रीवास्तव, सीता श्याम, डॉ. प्रज्ञा शारदा , ममता सूद, कविता रोहिला, राधा असर अग्रवाल, अलका शर्मा, शीनू वालिया, मणि शर्मा, दृष्टि त्रिखा, शीला गहलावत, निशा वर्मा, सुनीता गर्ग, आरती प्रिय, गरिमा, सारिका धुपड़, शिखा श्याम राणा, अलका शर्मा, नीरजा शर्मा, धीरजा शर्मा, सतवंत गोगी, नीरू मित्तल, आभा साहनी, रेणु अब्बी, रेणुका चुघ मिड्ढा ने अपनी रचनाएं सुनाई।
नीलम त्रिखा ने अपनी इस रचना से वर्षा ऋतु का स्वागत किया,
सावन की ठंडी फुहार ने एक खवाब सुहावना दे दिया…
राशि श्रीवास्तव ने प्रियतम के साथ सावन को कुछ यूं देखा
बरस जाओ कि धरती दिल की बंजर है ये खाली है,
तू मेरा है तो सावन है वरना पतझड़ की डाली है।
सीता श्याम ने अपनी रचना के माध्यम से बादल से कुछ यूं कहा,
ए बादल जरा रुक कर बरस,
कहीं आ न पाएं साजन मेरे,
मैं भीगना चाहती हूं तेरी बूंदों में,
जब भीगेंगे वो साथ मेरे।
डॉ. प्रज्ञा शारदा ने कहा,
इतना बरसना हे सावन,
जल-थल चहुं ओर हो जाए।
इतना बरसना इस मौसम,
सब ग़लतफहमियां धुल जाएं।।
सारिका धूपड़ ने ये रचना प्रस्तुत की,
वर्षा के बाद मिट्टी का महकना,
बगीचे में पक्षियों का चहकना,
दिल मोर सा नाचने लगता था,
प्रीतम की कहानियां गढ़ता था।
दृष्टि त्रिखा ने अपनी कविता में कहा,
आओ एक सुंदर सी कागज की किश्ती बनाएं।
उस पर संदेश लिखकर सबके चेहरे पर खुशियां लाएं।।
मणि शर्मा मनु ने कहा,
झूम के जब सावन ये आया,
इतना मनमोहक रूप बनाया।
जहां देखो वहां हरियाली,
जीव-जंतु और मानव तक का,
सावन ने है मन हर्षाया।।
कविता रोहिला कुरुक्षेत्र ने कहा,
वर्षा ऋतु आई है,
जल की बूंदें लाई है,
मचल उठा है मन मयूरा,
मनभावन ॠतु आई है।
आभा साहनी ने कहा,
खो रहा हूं अतीत के पन्नों में एक बार दोबारा,
भीगी मिट्टी की सौंधी महक राज उगलने लगी।
सुनीता गर्ग ने कहा,
मौसम बड़ा सुहाना है,
मन को भाने वाला है,
गर्मी जो हमें तपाती थी,
हृदय को पिघलाती थी।
राधा अग्रवाल ने अपनी इस रचना से वाहवाही लूटी,
बादल ने जब पलकें खोलीं,
बारिश फिर धरती पर होली।
रिमझिम-रिमझिम बरसा पानी,
देता राहत तृप्त अग्न से।।
ममता सूद कुरुक्षेत्र ने कहा.
वर्षा की बूंदें जैसे ही पड़ी धरा पे,
सौंधी-सौंधी खुशबू बिखरी धरा पर।
रिमझिम वर्षा ने दिखाया ऐसा जादू,
खुशहाली ला दी सारी धरा पर।।
सतवंत कौर गोगी गिल ने कहा,
रिमझिम-रिमझिम बदरा बरसे,
आया है सखी सुहाना सावन।
झम-झम बूंदें अमृत बन बरसें,
दृश्य है सखी मनमोहन मनभावन।।
आरती ‘प्रिय’ ने वर्षा के लिए कहा,
काली घटा गगन में छाए,
ज्यों नभ में कालीन बिछाए।
संगीता शर्मा कुंद्रा चंडीगढ़ ने अपनी ये रचना पेश की,
बचपन की यादें सविता से,
बरसात के दिनों में बचपन में,
कितना मजाक करते थे,
नीरजा शर्मा ने अपनी कविता यूं सुनाई,
आया सावन झूम के,
घिरे बादल कड़कती बिजली,
वर्षा आई रे बादलों को चूम के,
उठी सौंधी खुशबू रे।
रेणुका मिड्ढा की कविता में बारिश का जिक्र ऐसा रहा,
बारिश की ताल पर बूंदों की रुनझुन,
बजती है जब घुंघरूओं की तरह,
बेखबर सोए अरमान,
मचल उठते हैं जुगनुओं की तरह।।
शीला गहलावत सीरत ने कहा,
इतना बरसना इबकै,
धुल जाए मन की दीवार,
मन का मैल मिटे सब ही,
रिश्तों को महका जाए।
गीता उपाध्याय ने कहा,
बाग बगीचे हर कली मुस्कुराई,
हरियाली ने ली अंगड़ाई।
अलका शर्मा ने कहा,
बारिश का मौसम मन को भाए,
नीरू मित्तल नीर ने अपने भाव कुछ इस तरह प्रकट किए,
पूरी हुई साधना इस वसुधा की,
फलित हुआ महायज्ञ तपन का।
हो गया एहसास रोम-रोम को,
स्वागत के सावन सजन का।।