CHANDIGARH: चरित्रवान व्यक्ति अपने हर सवाल का जबाव अपने शब्दों से ना देकर चरित्र व कर्म से देता है। बुद्धिमान व चरित्र युक्त व्यक्ति शब्दो की माला का कम से कम इस्तेमाल कर चरित्र रूपी निखार द्वारा ही अपना परिचय देता है। यही पहचान होती है असली चरित्रवान मनुष्य की। चरित्रवान इंसान सदा हर जगह सम्मान और इज्जत पाता है। चरित्रवान इंसान का हर क्षेत्र में समान का हकदार होता है। चरित्र से इंसान अपनी पुरानी पीढियों के दोष को भी धो देता है। जीवन का हर कदम मायने रखता है। कहा भी गया है कि अगर धन दौलत गई तो मनुष्य का कुछ गया, परिवारिक सदस्य गए तो कुछ कुछ गया लेकिन अगर मनुष्य के अंदर से चरित्र ही चला गया तो वह मनुष्य कहलाने का हक संसार से खो देता है। ये शब्द मनीषीश्रीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने सैक्टर-18सी गोयल भवन 1051 मे कहे।
मनीषी संत ने कहा- उसी तरह से आज के इंसान को भी बोलना कम और कर्म ज्यादा करना चहिए। क्योंकि आज कल दोने में आया है कि सभी लडाई झगडों की जड सही बोलना और कहां बोलना और कितना बोलना ही है। इंसान कभी सोच कर नहीं बोलता और जब वाणी से कुछ शब्द निकल जाए तो वह ककाी वापिस नहीं आते इसलिए जितना काी हो सके बोले कम और कर्म को ज्यादा महत्वा दे। जीवन मे चरित्र का निखार आ जाएतो वह संसार के अंदर अपनी एक अलग पहचान बनाकर जीता है। चरित्रवान व्यक्ति का चरित्र जीवन के अंदर बोलता है ना कि उसके शब्द। वह हर बात का सटीक जबाव शब्दों से नहीं बल्कि अपने चरित्र से देता है। संसार के अंदर जितने काी संत महात्मा हुए उन्होने भी अपने चरित्र से ही जीवन रूपी परिक्षा को जीता है। उन्होनें शब्दों का कम इस्तेमाल किया है। क्योंकि हर जगह, हर बात के अंदर उनका चरित्र ही उनकी पहचान को दर्शाता था। यहीं असली संत की पहचान होती है। चरित्रवान व्यक्ति अंदर से सहनशील, आदर्श व मर्यादा युक्त होता है उसकी संसार के अंदर एक अलग पहचान होती है। जैसे कमल का फूल पानी में रहते हुए भी पानी से निर्लेप रहता है उसी तरह से चरित्रवान व्यक्ति काी संसार के अंदर रहते हुए भी संसार से निर्लेप रहता है।
मनीषी संत ने अंत में फरमाया- आप संसार में किसी काी क्षेत्र व कार्य करते हुए तो वहां पर अपना चरित्र व कार्य करने की कुशलता का निखारों और सदा अपने चरित्र का निर्माण करते रहो। क्योंकि दुनिया के अंदर चरित्र से बडी कोई वस्तु नहीं है। अगर कभी चरित्र का दाग लगे तो इसका सीधा वार हमारे माता पिता और गुरू पर होता है। इसलिए सदा ये जीवन के अंदर ध्यान रो और सदा उन कार्यो से सचेत रहे जिससे हमारे गुरू और माता पिता के चरित्र पर दाग लगे। क्योंकि यह संसार का नियम है। अक्सर ऐसा देखने में आता है कि कुछ बच्चे स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई में बहुत अच्छे होते हैं, लेकिन बुरी संगति में फंसकर नशा या मद्यपान करने लगते हैं। उनका जीवन बर्बाद हो जाता है। कई बार सत्संगति न मिलने के कारण उपयुक्त वातावरण न होने के चलते बच्चा अपनी प्रतिभा का विकास नहीं कर पाता, जबकि सत्संगति से उसमें अटूट विश्वास जगता है और वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है।