कैरियर बनाने की इच्छा रखने वाले हर उम्र के लोगों के लिए इसने बगैर किसी भेदभाव के अनेक द्वार खोल दिए हैं।
आज के युग में तकनीक, जिसे टेक्नोलॉजी कहते हैं, लगातार और तीव्रता के साथ बदल रही है। इसके व्यावहारिक पक्ष को हम सभी ने कोरोनाकाल में विशेष तौर पर महसूस किया, जब घर बैठे कार्य करने के लिए वर्चुअल और ऑनलाइन मीटिंग्स, स्कूल की कक्षाओं का संचालन या फिर वर्क फ्रॉम होम जैसे विभिन्न माध्यम अस्तित्व में आए।
इतना ही नहीं, कल तक जो फिल्में और टीवी विश्वभर में मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन थे, आज इंटरनेट और विभिन्न ओटीटी प्लेटफार्म उनकी जगह ले चुके हैं। जब 2008 में भारत में पहला ओटीटी प्लेटफार्म लॉन्च हुआ था, तब से लेकर आज तक, जब लगभग 40 ओटीटी प्लेटफार्म हमारे देश में मौजूद हैं, इसने काफी लम्बा सफर तय किया है।
केजीएमजी मीडिया एंड एंटरटेनमेंट की 2018 की एक रिपोर्ट का कहना था कि भारत का ओटीटी बाजार 2023 तक 45 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करेगा लेकिन कोरोनाकाल में इसने यह लक्ष्य समय से पहले ही प्राप्त कर लिया। दरअसल, लॉकडाउन के दौरान सिनेमा और मल्टीप्लेक्स बंद होने के कारण ओटीटी प्लेटफार्म ने भारत समेत सम्पूर्ण विश्व में हर आयु वर्ग के आकर्षण के साथ-साथ जबरदस्त स्वीकार्यता भी प्राप्त की।
लेकिन जहां इसने मनोरंजन और इस क्षेत्र में संघर्षरत युवाओं के लिए नए आयाम खोले हैं, वहीं कई विवादों और चिंताओं को भी जन्म दिया है। जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार ओटीटी प्लेटफार्म के भी सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलू हैं। अगर इसके सकारात्मक पक्ष की बात करें तो फि़ल्म और सीरियल जगत में कैरियर बनाने की इच्छा रखने वाले हर उम्र के लोगों के लिए इसने बगैर किसी भेदभाव के अनेक द्वार खोल दिए हैं।
आज एक आम चेहरे अथवा साधारण आवाज या फिर बिल्कुल आम शारीरिक बनावट के साथ किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति के लिए यहां असीमित अवसर हैं। जहां फिल्म इंडस्ट्री में नेपोटिज्म और कास्टिंग काउच के चलते बहुत से प्रतिभावान युवा मायूस हो जाते थे, आज इन्हीं ओटीटी प्लेटफार्म के दम पर उन्होंने अपनी पहचान बना ली है। वहीं दर्शकों को भी एक फिल्म देखने के लिए टिकट के भारी-भरकम पैसों के अलावा इंटरवेल में कोक, कॉफी, पॉपकार्न जैसी चीजें मल्टीप्लेक्स में महंगे दामों पर खरीदनी पड़ती थीं, आज वो लगभग मुफ्त में घर बैठे इन चीजों का आनंद ले रहे हैं।
अगर ओटीटी के नकारात्मक पक्ष की बात करें तो मनोरंजन, रचनात्मकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जिस प्रकार की सामग्री इनके माध्यम से आज परोसी जा रही है वो देश के आमजन से लेकर बुद्धिजीवियों और अब तो सरकार तक के लिए भी चिंता का विषय बनती जा रही है। यह विषय इसलिए भी गंभीर हो जाता है, क्योंकि भारत सरकार का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है। क्योंकि ये ओटीटी प्लेटफार्म देश के वर्तमान कानूनों के दायरे से बाहर हैं।
दरअसल, फिल्मों के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन है, टीवी के लिए न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडड्र्स अथॉरिटी है, प्रिंट मीडिया के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया है लेकिन ओटीटी प्लेटफार्म पर नजर रखने के लिए कोई संस्था नहीं है।
और तो और, इनको अपनी सामग्री दर्शकों तक पहुंचाने के लिए केबल ऑपरेटर या सैटेलाइट कनेक्शन जैसे किसी माध्यम की आवश्यकता भी नहीं होती। ये दर्शकों तक स्मार्ट फोन, लैपटॉप, स्मार्ट टीवी जैसे साधनों से आसानी से पहुंच जाते हैं। आज ओटीटी प्लेफॉर्म ही नहीं, बल्कि कोई भी व्यक्ति इंटरनेट पर जो चाहे अपलोड कर सकता है। इसी बात का लाभ इन ओटीटी प्लेटफार्म को मिल जाता है। यही कारण है कि फिक्शन या कल्पना या कलात्मक सृजनात्मकता के नाम पर ये प्लेटफार्म कुछ भी दिखाने का साहस कर पाते हैं। चाहे हिन्दू धर्म और उसके देवी-देवताओं का अपमान हो या फिर ऑनलाइन फ्रॉड के तरीके दर्शकों को सिखाना (जामताड़ा) या फिर हत्या और क्राइम करके कानून से बचने के तरीके दिखाना। यही कारण है कि कई बार मिर्जापुर, पाताल लोक या तांडव जैसी सीरीज के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की जाती हैं।
लेकिन अगर कोई स्पष्ट और सख्त कानून मौजूद होता, जो इनकी ‘रचनात्मकता, अभिव्यक्ति और सृजनात्मकता’ को सीमाओं के साथ परिभाषित करता तो लोगों या संस्थाओं को ओटीटी प्लेटफार्म के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में यह लड़ाई नहीं ल़ड़नी पड़ती, अपितु ये स्वयं कानून के दायरे में रहते और अपनी सीमाओं को भी पहचानते लेकिन आज की हकीकत यह है कि इस प्रकार की सीरीज में अमर्यादित भाषा और आचरण से लेकर क्रूरता से भरी हिंसा दिखाई जा रही है, जो हमारे समाज पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव छोड़ रही है।
आज जिस प्रकार छोटे-छोटे बच्चों द्वारा अपराध करने की घटनाएं सामने आ रही हैं या फिर छोटी-छोटी बच्चियों के साथ यौन अपराध की घटनाएं बढ़ गई हैं, कहीं न कहीं हमें ओटीटी प्लेटफार्म द्वारा परोसी जाने वाली सामग्री पर ध्यान देने की आवश्यकता महसूस करा रही हैं। क्योंकि सबसे अधिक चिंता का विषय यह है कि इस प्रकार की आपत्तिजनक सामग्री इंटरनेट पर, स्मार्ट फोन पर बेहद सरलता से उपलब्ध है। उस स्मार्ट फोन पर, जो आज छोटे से छोटे बच्चे के हाथ में है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह ओटीटी प्लेटफार्म को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश उसके सामने प्रस्तुत करे।
इस प्रकार की परिस्थितियों से जूझने वाला भारत एकमात्र देश नहीं है। इंटरनेट और स्मार्ट फोन के आविष्कार के साथ नई चुनौतियों और समस्याओं का भी अविष्कार हुआ है, जिनसे विश्व का हर देश जूझ रहा है। भारत में भले ही हमारी सरकार ने आज इस दिशा में सोचना शुरू किया है लेकिन विश्व के कई देश नए कानून बनाकर ओटीटी प्लेटफार्म को इन कानूनों के दायरे में ला चुके हैं। अमेरिका में 2019 में इनके लिए कानून बन गया था। योरोपीय यूनियन में भी पिछले साल इन पर नियंत्रण रखने के लिए सख्त कानून बनाया गया है। ऑस्ट्रेलिया में ओटीटी प्लेटफार्म के नियंत्रण के लिए ऑनलाइन कंटेंट को रेगुलेटरी कानून 2000 में ही बना लिया गया था। सऊदी अरब में तो इंटरनेट पर परोसी जाने वाली समस्त सामग्री का नियमन एन्टी साइबर क्राइम लॉ द्वारा किया जाता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस एक कानून से ही वो इंटरनेट पर प्रसारित होने वाली सामग्री पर रोक लगा सकता है।
हमारी सरकार देर से ही सही लेकिन जागी तो है। अगर इसके नकारात्मक पक्ष पर ध्यान देकर उस पर लगाम लगाने के प्रयास किए जाएं तो ओटीटी प्लेटफार्म, जो आज मनोरंजन के क्षेत्र में डिजिटल क्रांति का प्रतीक बन चुका है, निश्चित ही समाज में सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों के संचार का महत्वपूर्ण जरिया भी बन सकता है। उम्मीद है कि शीघ्र ही हमारे देश में भी ओटीटी प्लेटफार्म के नकारात्मक पक्ष पर कानूनी रूप से अंकुश लगाया जाएगा, ताकि अपने सकारात्मक पक्ष के साथ यह खुलकर समाज की उन्नति में अपना योगदान दे सके।
- डॉ. नीलम महेंद्र (लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं)