इस दिसम्बर में सिर्फ 3 मुहूर्त थे विवाह के, अब अगले वर्ष 24 अप्रैल से होंगी शादियां शुरू
जो लोग ज्योतिषीय मुहूर्तों का अनुसरण कर विवाह करने में विश्वास रखते हैं, उनके लिए घोड़ी या डोली चढ़ने केे लिए इस दिसम्बर महीने में मात्र 3 दिन ही थे। अब 2021 की 16 फरवरी 2021 को बसंत पंचमी तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। दिसंबर-2020 में केवल 7, 9 और 10 तारीख को ही शुभ मुहूर्त थे।
इसका कारण है कि विवाह मुहूर्त विचार में गुरु तथा शुक्र दो ग्रहों का आकाश मंडल में अच्छी स्थिति में होना आवश्यक है। गुरु 10 दिसम्बर की रात्रि 26 बजकर 14 मिनट अर्थात 11 दिसम्बर की प्रातः 2 बजकर 24 मिनट से परम नीचांश में आ गए। इसमें विवाह वर्जित माने जाते हैं।
नए साल 2021 के मध्य तक पौष मास रहेगा। इसमें भी विवाह नहीं किए जाते। फिर 7 जनवरी से 3 फरवरी तक गुरु अस्त रहेगा। उसके बाद 8 फरवरी से 18 अप्रैल तक शुक्र भी अस्त हैं। इस कारण माघ, फाल्गुन तथा चैत्र मास विवाह एवं अन्य शुभ कार्यों के लिए त्याज्य रहेंगे। शुक्र ग्रह 18 अप्रैल 2021 को उदित तो हो जाएगा परंतु 21 अप्रैल तक बालयत्व दोष में रहेगा। शुद्ध विवाह मुहूर्त 24 अप्रैल से आरंभ होंगे।
इस मध्य 16 फरवरी को बसंत पंचमी आएगी, जिसे अबूझ मुहूर्त कहते हैं। इस दिन विवाह किए जा सकते हैं। यदि आपको विवाह करना बहुत आवश्यक है तो किसी भी रविवार को अभिजीत मुहूर्त, जो लगभग दिसंबर व जनवरी में दोपहर 11 बजकर 40 मिनट से लेकर 12 बजकर 24 मिनट तक रहेगा, में कर सकते हैं। इस अवधि में किया गया कोई भी आवश्यक कार्य सफल होता है। विशेषतः जब रविवार को किया जाए। इसीलिए हमारे कई समुदायों में रविवार को ठीक मध्यान्ह पर लावें फेरे लेने की प्रथा चली आ रही है।
अधिकांश लोग पौष मास में विवाह करना शुभ नहीं मानते। ऐसा भी हो सकता है कि दिसम्बर मध्य से लेकर जनवरी मध्य तक उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ती है। धुंध के कारण आवागमन भी बाधित रहता है और खुले आकाश के नीचे विवाह की कुछ रस्में निभाना प्रतिकूल मौसम के कारण संभव नहीं होता। इसलिए 16 दिसम्बर की पौष संक्रांति से लेकर 14 जनवरी की मकर संक्राति तक विवाह न किए जाने के निर्णय को ज्योतिष से जोड़ दिया गया हो।
रविवार को ही सर्वाधिक विवाह क्यों ?
कुछ समुदायों में ऐसे मुहूर्तों दरकिनार रखकर रविवार को मध्यान्ह में लावां फेरे या पाणिग्रहण संस्कार करा दिया जाता है। इसके पीछे भी ज्योतिषीय कारण पार्श्व में छिपा होता है। हमारे सौर्यमंडल में सूर्य सबसे बड़ा ग्रह है, जो पूरी पृथ्वी को ऊर्जा प्रदान करता है। यह दिन और दिनों की अपेक्षा अधिक शुभ माना गया है। इसके अलावा हर दिन ठीक 12 बजे अभिजित मुहूर्त चल रहा होता है। भगवान श्रीराम का जन्म भी इसी मुहूर्तकाल में हुआ था। जेैसा इस मुहूर्त के नाम से ही स्पष्ट है कि जिसे जीता न जा सके अर्थात ऐसे समय में हम जो कार्य आरंभ करते हैं , उसमें विजय प्राप्ति होती है। ऐसे में पाणिग्रहण संस्कार में शुभता रहती है। अंग्रेज भी संडे यानी रविवार को सैबथ डे अर्थात पवित्र दिन मानकर चर्च में शादियां करते हैं।
रविवार का अवकाश 10 जून 1890 से हुआ आरंभ
कुछ लोगों को भ्रांति है कि रविवार को अवकाश होता है, इसलिए विवाह इतवार को रखे जाते हैं। ऐसा नहीं है। भारत में ही छावनियों तथा कई नगरों में रविवार की बजाय सोमवार को छुट्टी होती है और कई स्थानों पर गुरु या शुक्रवार को। एक दिन आराम करने से लोगों में रचनात्मक ऊर्जा बढ़ती है। सबसे पहले भारत में रविवार की छुट्टी मुंबई में दी गई थी। इतना ही नहीं, रविवार की छुट्टी होने के पीछे एक और कारण है।
हर धर्म का अपना अपना दिन
दरअसल, सभी धर्मों में एक दिन भगवान के नाम का होता है। जैसे कि हिंदुओं में सोमवार शिव भगवान का, मंगलवार हनुमान जी का। ऐसे ही मुस्लिमों में शुक्रवार यानि जुम्मा होता है। मुस्लिम बहुल्य देशों में शुक्रवार को छुट्टी दी जाती है। इसी तरह ईसाई धर्म में रविवार को ईश्वर का दिन मानते हैं और अंग्रेजों ने भारत में भी उसी परंपरा को बरकरार रखा था। उनके जाने के बाद भी यही चलता रहा और रविवार का दिन छुट्टी का दिन ही बन गया। साल 1890 से पहले ऐसी व्यवस्था नहीं थी। साल 1890 में 10 जून वो दिन था जब रविवार को साप्ताहिक अवकाश के रूप में चुना गया।
ब्रिटिश शासन के दौरान मिल मजदूरों को हफ्ते में सातों दिन काम करना पड़ता था। यूनियन नेता नारायण मेघाजी लोखंडे ने पहले साप्ताहिक अवकाश का प्रस्ताव किया, जिसे नामंजूर कर दिया गया। अंग्रेजी हुकूमत से 7 साल की सघन लड़ाई के बाद अंग्रेज रविवार को सभी के लिए साप्ताहिक अवकाश देने पर राजी हुए। इससे पहले सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी मिलती थी।दुनिया में इस दिन छुट्टी की शुरुआत इसलिए हुई, क्योंकि ये ईसाइयों के लिए गिरिजाघर जाकर प्रार्थना करने का दिन होता है.
- मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, फोनः 9815619620, # 458. सैक्टर-10, पंचकूला।