किताबों में लिखा हैमन की सुनोमन की कहोमन की करो। की थी एक बारमैंने भी मन की,मन की लिखी थीतो शब्द रूठ गए,थोड़ा सा सच बोलातो अपने भूल गएज़रा सी आवाज़ उठाईंतो रिश्ते टूट गए। मौन रही जब तकसबने कमज़ोर माना,निशब्द रही तोगूंगी जाना। पर अब नहीं,अब नहीं जी सकतीदोहरी ज़िंदगी,नहीं लगा सकती नकाब,नहीं करना … Continue reading आज की कविताः यथार्थ
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