CHANDIGARH: मेयर चुनाव में आखिरकार जीत भाजपा की ही हुई। भाजपा के उम्मीदवार रविकांत शर्मा को चंडीगढ़ का नया मेयर चुन लिया गया। उन्होंने सीधे मुकाबले में अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के देविंदर सिंह बबला को 12 मतों से हराया। बबला को 5 वोट मिले लेकिन खास बात यह है कि भाजपा के रविकांत शर्मा को 17 वोट ही मिल पाए, जबकि भाजपा के 19 पार्षद मौजूद थे। दो वोट खारिज हो गए। अब यह दो वोट सवालों के घेरे में हैं।
एक साल के लिए होता है चुनाव
चंडीगढ़ में शहर के आम मतदाताओं के जरिए पांच साल के लिए नगर निगम सदन का चुनाव होता है। इसमें अभी तक 26 वार्डों से पार्षद चुनकर आते रहे हैं लेकिन मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर का चुनाव हर साल एक वर्ष के कार्यकाल के लिए इन्हीं निर्वाचित पार्षदों के बीच से होता है। इस चुनाव में निर्वाचित पार्षद ही वोट डालते हैं। शहर के सांसद निगम सदन में पदेन सदस्य होने के कारण सांसद को भी इस चुनाव में वोटिंग का अधिकार हासिल है।
किरण खेर व हीरा नेगी नहीं आईं, हरदीप ने किया बहिष्कार
आज वर्ष 2021 के मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर के चुनाव के लिए नगर निगम के असेंबली हॉल में चुनाव प्रक्रिया पूर्व निर्धारित समय पर सुबह 11 बजे शुरू हुई। सबसे पहले मेयर पद के लिए वोटिंग हुई। नगर निगम सदन में इस समय 26 निर्वाचित पार्षद हैं, जबकि सांसद पदेन सदस्य होने के कारण किरण खेर का भी एक वोट है लेकिन अस्वस्थ होने के कारण सांसद किरण खेर वोट डालने नहीं आ सकीं। इसके अलावा भाजपा पार्षद हीरा नेगी कोरोना संक्रमित हो जाने के कारण इस चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकीं, जबकि अकाली दल के पार्षद हरदीप सिंह ने तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में इस चुनाव का बहिष्कार किया। इस तरह निगम सदन में आज कुल 27 वोटों में से 24 वोट रह गए। इनमें 5 पार्षद कांग्रेस के थे, जबकि 19 पार्षद भाजपा के मौजूद रहे।
हरदीप ने नए कृषि कानूनों पर जताया विरोध
नगर निगम सदन में अकाली दल के एक मात्र पार्षद हरदीप सिंह चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से पहले असेंबली हॉल में पहुंच गए थे। उन्होंने काले कपड़े पहने हुए थे। उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार तथा तीन नए कृषि कानूनों का विरोध जताते हुए इस चुनाव का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी तथा असेंबली हॉल से बाहर चले गए। यहां खड़े होकर वह हाथ में नारे लिखी तख्ती लेकर नए कृषि कानूनों पर अपना विरोध जताते रहे।
भाजपा-कांग्रेस दोनों के उम्मीदवारों को पड़े दो वोट
मेयर चुनाव के लिए वोटिंग के बाद जब मतों की गिनती की गई तो भाजपा प्रत्याशी रविकांत शर्मा के पक्ष में केवल 17 वोट निकले। माना जा रहा है कि उन्हें अपनी पार्टी के सभी 19 वोट नहीं मिले, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी देविंदर सिंह बबला को अपनी पार्टी के सभी पांचों पार्षदों के वोट मिले लेकिन भाजपा के रविकांत शर्मा को नहीं मिले 2 वोट कांग्रेस के भी खाते में नहीं गए। यह दो वोट चुनाव अधिकारी ने रिजैक्ट कर दिए थे। बताया जाता है कि इन दोनों मत पत्रों पर भाजपा व कांग्रेस दोनों प्रत्याशियों को वोट दे दिए गए थे। इसलिए इन्हें वैध नहीं माना गया। लिहाजा, मेयर पद पर भाजपा पार्षद रविकांत शर्मा को 12 मतों से विजयी और निर्वाचित घोषित कर दिया गया।
सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर पदों पर कांग्रेस को शून्य वोट
इसके बाद भाजपा के महेश इंदर सिद्धू सीनियर डिप्टी मेयर चुने गए। उन्हें अपनी पार्टी के सभी 19 वोट मिले। भाजपा की ही फर्मिला देवी डिप्टी मेयर चुनी गईं। उन्हें भी अपनी पार्टी के सभी 19 वोट मिले। खास बात यह रही कि कांग्रेस पार्षदों ने इन दोनों पदों के चुनाव के लिए वोटिंग ही नहीं की। ऐसे में कांग्रेस उम्मीदवारों को कोई वोट नहीं मिला। कांग्रेस ने सीनियर डिप्टी मेयर पद पर अपनी पार्षद रविंद्र कौर गुजराल को तथा डिप्टी मेयर पद पर अपने पार्षद सतीश कुमार कैंथ को उम्मीदवार के तौर पर उतारा था। दोनों के खाते में वोट शून्य रहे।
चंद्रावती व भरत ने दिखाए थे बागी तेवर
अब चुनाव के बाद सवाल केवल यह उठ रहा है कि रिजैक्ट हुए दो वोट किसके थे ? बागी तेवर दिखाने वाले पार्षदों के या किसी और के ? हालांकि इसका तात्कालिक जवाब तो मेयर पद को लेकर भाजपा में हुई बगावत से जोड़कर ही देखा जा रहा है लेकिन भाजपा अभी इसकी समीक्षा करेगी। बता दें कि इस चुनाव के लिए 4 जनवरी को नामांकन के अंतिम दिन भाजपा ने अपने प्रत्याशियों के नाम घोषित किए थे। मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर पदों के लिए क्रमशः रविकांत शर्मा, महेश इंदर सिद्धू व फर्मिला देवी का नाम घोषित होते ही भाजपा में बगावत का बवंडर खड़ा हो गया था। भाजपा पार्षद चंद्रावती शुक्ला ने बागी तेवर दिखाते हुए जहां मेयर पद के लिए नामांकन कर दिया था, वहीं भाजपा के ही पार्षद भरत कुमार ने पार्टी पर पूर्वांचल व उत्तराखंड के लोगों की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफे की धमकी दे दी थी। तब उनका कहना था कि वह अब केवल अपने इलाके के पार्षद हैं, किसी पार्टी से संबंध नहीं है।
खिल गई थीं कांग्रेस की बांछें, चंद्रावती का किया था समर्थन
भाजपा में सिर्फ यही दो पार्षद थे, जिन्होंने इस चुनाव में प्रत्याशी चयन को लेकर बगावत का झंडा बुलंद किया था लेकिन अंदरखाते भाजपा के कुछ अन्य पार्षदों का भी इन्हें समर्थन मिलने के दावों से कांग्रेस की बांछें खिल गई थीं। निगम सदन में सिर्फ 5 सीट वाली कांग्रेस को 20 सीटों वाली भाजपा में इस बगावत से अपनी जीत की उम्मीद नजर आने लगी तो कांग्रेस ने मेयर पद के लिए नामांकन करने वाली भाजपा की बागी पार्षद चंद्रावती शुक्ला को समर्थन देने का ऐलान कर दिया था लेकिन 5 जनवरी को नामांकन पत्रों की स्क्रूटनी में पासा पलट गया। भाजपा की बागी चंद्रावती शुक्ला का नामांकन पत्र तकनीकी गलतियों के चलते रद्द हो गया और वह मेयर पद पर उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर हो गईं।
अरुण सूद ने चुनाव प्रबंध में दिखाया अपना कौशल, खाते में जुड़ी पहली चुनावी उपलब्धि
पार्टी में बगावत को शांत करने में जुटे चंडीगढ़ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण सूद ने इसके बाद चुनाव प्रबंधन में अपना जो कौशल दिखाया, उसका परिणाम आज सबके सामने है। मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर के पद एक बार फिर भाजपा के ही कब्जे में हैं। यह बात अलग है कि भाजपा के बागी हुए दोनों पार्षदों का गुस्सा अभी शांत नहीं हुआ है लेकिन अरुण सूद ने उनके असंतोष का लाभ कांग्रेस को नहीं लेने दिया। न ही बागियों के समर्थक किसी अन्य भाजपा पार्षद का वोट कांग्रेस की झोली में जाने दिया। यही कारण है कि कांग्रेस सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर के पदों पर तो चुनाव लड़ने से ही पीछे हट गई। इसी के साथ चंडीगढ़ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण सूद के खाते में बेहद कड़ी चुनौती से गुजरती हुई यह पहली चुनावी उपलब्धि जुड़ गई। अब देखना यह भी दिलचस्प होगा कि मेयर पद पर भाजपा के साथ कांग्रेस प्रत्याशी को भी वोट देकर दो पार्षदों ने अपना जो विकल्प खुला रखा है, उस पर भाजपा का रुख क्या रहने वाला है ?