CHANDIGARH: पंजाब में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस की प्रचंड जीत से चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस भी गदगद हो गई है। क्योंकि चंडीगढ़ में भी इसी साल नगर निगम चुनाव होने जा रहा है और अभी चंडीगढ़ नगर निगम पर पूर्ण बहुमत से भाजपा का कब्जा है। चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस को अब यहां भी कांग्रेस का परचम लहराने की उम्मीद है लेकिन निगम चुनाव से पहले यहां नए प्रदेश नेतृत्व के सामने बड़ी चुनौती भी खड़ी है।
पिछले चुनाव में कांग्रेस खो बैठी थी निगम की सत्ता
चंडीगढ़ नगर निगम पर लंबे समय तक कांग्रेस का कब्जा रहा है लेकिन 2016 के नगर निगम चुनाव में भाजपा ने बड़ी जीत हासिल करते हुए कांग्रेस को 5 सीटों पर समेट दिया था। अब चंडीगढ़ नगर निगम के लिए आम चुनाव इसी साल दिसम्बर में होना है। भाजपा इस चुनाव में भी 2016 का प्रदर्शन दोहराने की तैयारी कर रही है तो कांग्रेस भी चंडीगढ़ नगर निगम की सत्ता भाजपा से छीनने के लिए आतुर है।
इस साल बड़ा दिलचस्प होगा मुकाबला
इस सियासी जंग में चंडीगढ़ नगर निगम का चुनाव इस बार बड़ा दिलचस्प भी होगा। निगम चुनाव क्षेत्र की सीमा में विस्तार इसका सबसे बड़ा कारण है। इस बार चंडीगढ़ नगर निगम में वार्डों की संख्या 26 से बढ़ाकर 35 हो गई है। विशेष बात यह है कि चंडीगढ़ के 13 गांव निगम सीमा में शामिल कर लिए जाने से ऐसा हुआ है। यानी अब चंडीगढ़ नगर निगम क्षेत्र में गांवों की संख्या अहम हो गई है और तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन का असर सबसे ज्यादा गांवों में है। हालांकि पंजाब के स्थानीय निकाय चुनाव के दौरान शहरों में भी किसान आंदोलन का प्रभाव स्पष्ट हुआ है। इसलिए किसान आंदोलन का ही खामियाजा आज भाजपा और अकाली दल को पंजाब के स्थानीय निकाय चुनाव में भुगतना पड़ा। माना जा रहा है कि किसान आंदोलन अभी चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव की दहलीज तक भी खिंचेगा।
प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव से ठहर गईं संगठन की गतिविधियां
चंडीगढ़ में हालांकि कई स्थानीय मुद्दों को लेकर भी कांग्रेस सत्तारूढ़ भाजपा को घेर रही है लेकिन किसान आंदोलन के चलते बने सियासी हालात ने चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस को इस बार के निगम चुनाव को लेकर ज्यादा उत्साहित किया है। यही कारण है कि पिछले दिनों यहां कांग्रेस ने तीन नए कृषि कानूनों को लेकर कई बड़े और प्रभावी आंदोलन किए लेकिन गत 9 फरवरी को चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व में पार्टी हाईकमान द्वारा अचानक किए गए बदलाव से संगठन की गतिविधियां ठहर गई हैं। कांग्रेस हाईकमान ने चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस की कमान प्रदीप छाबड़ा से लेकर सुभाष चावला को सौंप दी है। इससे पार्टी में असंतोष की स्थिति पैदा हो गई है। प्रदीप छाबड़ा को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के खिलाफ कई नेता मुखर हो रहे हैं तो कल पार्टी के प्रदेश मीडिया सैल के अध्यक्ष ने भी इस्तीफा दे दिया।
अब निचले स्तर तक होने वाले बदलाव पर सबकी नजर
अब स्थिति यह है कि निगम चुनाव के मद्देनजर लंबे समय से तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा भाजपा के खिलाफ जो व्यूह रचना कर रहे थे, उसे नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चावला अपने तरीके से बदलने वाले हैं। पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन के बाद यह स्वाभाविक भी है लेकिन निगम चुनाव के लिए जितना समय बचा है, उसे देखते हुए चावला के लिए यह काम बड़ी चुनौती है। यही कारण है कि पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन के हाईकमान के तरीके और इसके लिए किए गए वक्त के चयन पर सवाल उठ रहे हैं। लिहाजा, अब 21 फरवरी को नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चावला की औपचारिक ताजपोशी के बाद चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस संगठन में निचले स्तर तक होने वाले बदलाव पर सबकी नजर टिकी है।