लोहड़ी पर्व परंपरागत रूप से रबी की फसल से जुड़ा हुआ है और यह किसान परिवारों में सबसे बड़ा उत्सव भी है। पंजाबी किसान लोहड़ी को वित्तीय नए साल के रूप में भी देखते हैं। कुछ का मानना है कि लोहड़ी ने अपना नाम लिया है, कबीर की पत्नी लोई, ग्रामीण पंजाब में लोहड़ी लोही है। मुख्यतः पंजाब का पर्व होने से इसके नाम के पीछे कई तर्क दिए जाते हैं। ल का अर्थ लकड़ी है, ओह का अर्थ गोहा यानी उपले और ड़ी का मतलब रेवड़ी। तीनों अर्थों को मिलाकर लोहड़ी बना है।
अग्नि प्रज्जवलन का शुभ मुहूर्त
इस दिन पौष अमावस को प्रातः 10.30 बजे तक स्नान-दान एवं पितृ तर्पण का विशेष महातम्य होगा। बुधवार की सायंकाल 6 बजे लकड़ियां, समिधा, रेवड़ियां, तिल आदि सहित अग्नि प्रदीप्त करके अग्नि पूजन के रूप में रात्रि 11 बजकर 42 मिनट तक लोहड़ी पर्व मनाएं। संपूर्ण भारत में लोहड़ी पर्व धार्मिक आस्था, ऋतु परिवर्तन, कृषि उत्पादन, सामाजिक औचित्य से जुड़ा है। पंजाब में यह कृषि में रबी फसल से संबंधित है। मौसम परिवर्तन का सूचक तथा आपसी सौहार्द का परिचायक भी है।
सायंकाल लोहड़ी जलाने का अर्थ है कि अगले दिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश पर स्वागत करना। सामूहिक रूप से आग जलाकर सर्दी भगाना और मूंगफली, तिल, गजक, रेवड़ी खाकर शरीर को सर्दी के मौसम में अधिक समर्थ बनाना ही लोहड़ी मनाने का उद्देश्य है। आधुनिक समाज में लोहड़ी उन परिवारों को सड़क पर आने को मजबूर करती है, जिनके दर्शन पूरे वर्ष नहीं होते। रेवड़ी-मूंगफली का आदान-प्रदान किया जाता है। इस तरह सामाजिक मेल-जोल में इस त्योहार का महत्वपूर्ण योगदान है।
इसके अलावा कृषक समाज में नववर्ष भी आरंभ हो रहा है। परिवार में गत वर्ष नए शिशु के आगमन या विवाह के बाद पहली लोहड़ी पर जश्न मनाने का भी यह अवसर है। दुल्ला भट्टी की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखने का मौका है। बढ़ते हुए अश्लील गीतों के युग में ‘सुंदरिए मुंदरिए हो’ जैसा लोक गीत सुनना बचपन की यादें ताजा करने का समय है।
आयुर्वेद के दृष्टिकोण से जब तिल युक्त आग जलती है, वातावरण में बहुत सा संक्रमण समाप्त हो जाता है और परिक्रमा करने से शरीर में गति आती है। गावों में आज भी लोहड़ी के समय सरसों का साग, मक्की की रोटी अतिथियों को परोसकर उनका स्वागत किया जाता है।
किवदंतियों के अनुसार लोहड़ी की उत्पत्ति दुल्ला भट्टी से संबंधित है, जिसे पंजाब के रॉबिन हुड के रूप में जाना जाता है। वह मुगल शासन के दौरान पंजाब का सबसे बड़ा मुस्लिम डाकू था। वह अमीर से लूटा गया धन गरीबों के बीच वितरित कर देता था। उसने कई हिंदू पंजाबी लड़कियों को भी बचाया, जिन्हें जबरन बाजार में बेचने के लिए ले जाया जा रहा था। हिंदू अनुष्ठानों के अनुसार उन्हें दहेज प्रदान किया तथा लाहौर में उनके सार्वजनिक निष्पादन के बाद अपने उद्धारकर्ता की याद में लड़कियों ने गाने गाए और बोनफायर के आसपास नृत्य किया। यह उस दिन से पंजाब की परंपरा थी और हर साल पंजाब में लोहड़ी के रूप में इस दिन को गर्व से मनाया जाता था। हर लोहड़ी गीतों में दुल्ला भट्टी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है।
- मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद, 458 सेक्टर-10, पंचकूला। फोनः 09815619620